प्राचीन काल से एक राजा के लिए राज्य पदाधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती थी। योग्य पदाधिकारियों की सहायता से ही राजा जनकल्याण के कार्य करते थे। राजा बालो कल्याणचंददेव का शासन काल और राज्य पद भी चंद राज्य के उत्थान का एक महत्वपूर्ण कारक था। सोहलवीं शताब्दी में इस राजा का शासन काल चंद वंश…
राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र
राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र कुमाऊँ में विस्तृत चंद राज्य के प्रमाण को प्रस्तुत करते हैं। इस राजा के शासन काल में चंद राज्य की राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा स्थानान्तरित हुई। अन्य चंद राजाओं की भाँति राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र भी स्थानीय कुमाउनी भाषा में उत्कीर्ण हैं। जबकि उत्तराखण्ड के पौरव और कार्तिकेयपुर राजवंश के शासकों…
कुमाऊँ का त्रिकोणीय संघर्ष
मध्य कालीन भारतीय इतिहास में कन्नौज का त्रिकोणीय संघर्ष अपना विशेष महत्व रखता है। इसी प्रकार मध्य हिमालय के पर्वतीय राज्य कुमाऊँ का त्रिकोणीय संघर्ष भी उत्तराखण्ड के स्थानीय इतिहास में अपना महत्व रखता है। कन्नौज के त्रिकोणीय संघर्ष में गुर्जर-प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट सम्मिलित थे, वहीं कुमाऊँ का त्रिकोणीय संघर्ष डोटी के मल्ल, चम्पावत…
जाह्नवी देवी नौला
गंगोलीहाट का जाह्नवी देवी नौला उत्तराखण्ड के प्राचीन अमूल्य धरोहरों में से एक है। स्थानीय लोग जाह्नवी देवी नौला को ‘जानदेवी’ नौला कहते हैं। यह नौला पर्वतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उत्तराखण्ड का कुमाऊँ क्षेत्र प्राचीन मंदिरों के साथ-साथ नौला स्थापत्य के लिए भी प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में मंदिरों के…
गंगोली का उत्तर कत्यूरी राजवंश
भारतीय इतिहास को जिस प्रकार गुप्त और उत्तर गुप्त शासन काल में विभाजित किया गया, ठीक इसी प्रकार उत्तराखण्ड के प्राचीन कत्यूरी राजवंश को भी कत्यूरी और उत्तर कत्यूरी काल में विभाजित किया गया है। मध्य हिमालय के इस राजवंश के विभाजन स्वरूप उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में कुछ क्षेत्रीय राज्य अस्तित्व में आये…
जाह्नवी देवी नौला अभिलेख-
जाह्नवी देवी नौला लेख देवनागरी लिपि तथा संस्कृत भाषा में लिखा गया है। सम्पूर्ण लेख इस प्रकार से है- 1- :।।ऊँ स्वि स्त गण पति प्र सादा त्ः अभि प्रताप्वन्सी धर्थं पूजीतोः अयस्य स्वरैरपीः 2- सर्व विघ्न क्षीते त्र स्व : गणा धिप ते न मः।। संवत् सर् 1321 मासानी 4 वार 3-.सि ला नीश…
गंगोलीहाट का जाह्नवी नौला अभिलेख –
गंगोलीहाट का जाह्नवी नौला अभिलेख एक लघु शिलापट्ट पर उत्कीर्ण है। यह नौला पर्वतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उत्तराखण्ड का प्राचीन इतिहास स्थानीय पर्वतीय स्थापत्य की दृष्टि अति महत्वपूर्ण था। उत्तरकाशी (बाड़ाहाट) से नेपाल के बैतड़ी तक विस्तृत पर्वतीय क्षेत्र से प्राप्त सैकड़ों प्राचीन मंदिर-नौले स्थानीय पर्वतीय स्थापत्य शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस…
उत्तराखण्ड के गुप्त- कार्तिकेयपुर राजवंश
उत्तराखण्ड के इतिहास में कार्तिकेयपुर राजवंश का गुणगान जिस प्रकार किया गया है, यह राजवंश मध्य हिमालय में गुप्त राजवंश के समान दृष्टिगत होता है। इस राजवंश को उत्तराखण्ड के गुप्त कह सकते हैं। चक्रवर्ती गुप्त राजवंश का कालखण्ड 319 ई. से 550 ई. तक मान्य है। जबकि बागेश्वर शिलालेख और कार्तिकेयपुर उद्घोष वाले ताम्रपत्रों…
कत्यूरियों की डोटी-अस्कोट वंशावली
उत्तराखण्ड के इतिहासकार कत्यूरी वंश को मध्य हिमालय का महान राजवंश घोषित करते हैं। कत्यूरियों की एक शाखा डोटी-अस्कोट की वंशावली कई पुस्तकों में प्रकाशित हो चुकी है। कार्तिकेयपुर के इस प्राचीन राजवंश के राज्य क्षेत्र को सम्पूर्ण उत्तराखण्ड से संबद्ध किया जाता है। इसका कारण है- उत्तरकाशी के कण्डारा, चमोली के पाण्डुकेश्वर…
गंगोलीहाट का मणकोटी राजवंश –
वर्तमान में गंगोलीहाट, सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ का एक तहसील नगर है, जहाँ कालिका का सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ है। कुमाऊँ के इस शक्तिपीठ की प्राचीनता को आदि गुरु शंकराचार्य से संबद्ध किया जाता है। इस शक्तिपीठ के प्रति स्थानीय जन मानस की ही नहीं बल्कि भारतीय सेना की भी अपार श्रद्धा है। ‘जय कालिका’ युद्ध-घोष के साथ…
कन्नौज का त्रिकोणीय संघर्ष और उत्तराखण्ड का कार्तिकेपुर राज्य :-
कार्तिकेयपुर, उत्तराखण्ड का एक प्राचीन राज्य नगर था, जिसकी पहचान विद्वान बागेश्वर जनपद के बैद्यनाथ से करते हैं। इस राज्य नगर का उल्लेख दशवीं शताब्दी के कवि राजशेखर ने ‘काव्यमीमांसा’ नामक काव्यग्रंथ में चन्द्रगुप्त द्वितीय और ध्रुवस्वामिनी प्रकरण पर किया। यह कवि कन्नौज के राजा महेन्द्रपाल (885-910 ई.) का राजगुरु था। इस कवि के अतिरिक्त…
बागेश्वर शिलालेख और उत्तराखण्ड के प्राचीन राजवंश :-
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में कुणिन्द, पौरव और कत्यूरी राजवंश का प्रमुख स्थान है। कुणिन्द इतिहास के मुख्य स्रोत कुणिन्द मुद्राएं हैं, तो पौरव वंश की जानकारी ताम्रपत्रों से प्राप्त होती है। कत्यूरी इतिहास को बागेश्वर जनपद के कत्यूरी घाटी (गोमती घाटी) से संबद्ध किया गया है, जिसके अंतिम छोर पर बागेश्वर…
सरयू-गोमती का प्रवाह और संगम तीर्थ ‘बागेश्वर’ का नामकरण :-
मध्य हिमालय का प्राचीन नगर बागेश्वर वैदिक नामकरण वाली गोमती और सरयू के संगम पर स्थित है। यह प्राचीन नगर समुद्र सतह से 935 मीटर की ऊँचाई तथा 29° 50’ 16.8’’ उत्तरी अक्षांश और 79° 46’ 15.6’’ पूर्वी देशांतर रेखा पर स्थित है। सड़क मार्ग से यह संगम स्थल मल्लों की एक शाखा…
राजा हर्ष के बांसखेड़ा और मधुबन ताम्रपत्रों का विश्लेषण :-
1-ताम्रापत्रारंभ- बांसखेड़ा और मधुवन ताम्रपत्र का प्रारंभिक वाक्यांश- ‘‘सिद्धम्।। स्वस्ति(।।) महानौहस्त्यश्वजयस्कन्धावार’’ एक ही है। ‘सिद्धम्’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘सिद्ध’ शब्द से हुई है, जो संस्कृत का विशेषण शब्द है, जिसका अर्थ- प्रमाणित, संपादित, प्राप्त, उपलब्ध और प्रयत्न में सफल आदि होता है। जबकि सिद्धम का अर्थ- धन्य है, उत्तम और पूरा किया होता…
राजा हर्ष का बांसखेड़ा ताम्रपत्र :-
(सन्दर्भ- श्रीवास्तव कृष्ण चन्द्र, 2007, यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद, प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, पृष्ठ- 499 से 500) सिद्धम।। स्वस्ति(।।) महानौहस्त्यश्वजयस्कन्धावाराच्छ्रीवर्द्धमानकोट्यामहाराजश्रीनरवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादा नुध्यातश्श्रीवज्रिणीदेव्यामुत्पन्नः परमादित्यभक्तोमहाराजश्रीराज्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातश्श्रीमदप्सरोदेप्यामुत्पन्नः परमादित्यभक्तोमहाराजश्रीमदादित्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातश्श्रीमहासेनगुप्तादेव्यामुत्पन्नश्चतुस्समुद्रातिक्क्रान्तकीर्ति प्रतापानुरागोपनयान्यराजोवर्ण्णाश्रमव्यवस्थापनप्रवृत्तचक्र एकचक्ररथ इव प्रजानामर्तिहरः परमादित्यभक्तपरमभट्टारक महाराजाधिराजश्रीप्रभाकरवर्द्धनस्तस्यपुत्त्रस्तत्पादानुध्यार्तास्सतयशप्रतानविच्छुरितसकलभुवनमण्डलपरिगृहीतधनदवरुणेन्द्र प्रभृतिलोकपालतेजास्सत्पथोपार्ज्जितानेकद्रविणभूमिप्रदानसंप्रीणितार्थिहृदयो(ऽ)तिशयतिपूर्व्वराजचरितोदेव्याममलयशोमत्या (त्यां) श्रीयशोमत्यामुत्पन्नः परमसौगतस्सुगत इव परहितैकरतः परमभट्टारकमहाराजाधिराज श्रीराज्यवर्द्धनः। राजानो युधि दुष्टवाजिन इव श्रीदेवगुप्तादय कृत्वा येन कशाप्रहारविमुखाः स्सर्व्वेसमं संयताः। उत्खाय द्विषतो विजित्य वसुधाड्.कृत्वा प्रजानां…
राजा हर्ष का मधुबन ताम्रपत्र :-
(सन्दर्भ- श्रीवास्तव कृष्ण चन्द्र, 2007, यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद, प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, पृष्ठ- 500 से 501) सिद्धम।। स्वस्ति(।।) महानौहस्त्यश्वजयस्कन्धावारात्कपित्थिकायाः महाराजश्रीनरवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातः श्रीवज्रिणीदेव्यामुत्पन्नः परमादित्यभक्तोमहाराजश्रीराज्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातःश्रीअप्सरोदेप्यामुत्पन्नःपरमादित्यभक्तो महाराजश्रीमदादित्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातः श्रीमहासेनगुप्तादेव्यामुत्पन्नश्चतुस्समुद्रातिक्क्रान्तकीर्तिः प्रतापानुरागोपनयान्यराजोवर्णाश्रमव्यवस्थापनप्रवृत्तचक्र एकचक्ररथ इव प्रजानामार्तिहरः परमादित्यभक्त परमभट्टारक महाराजाधिराजश्रीप्रभाकरवर्द्धनस्तस्यपुत्त्रस्तत्पादानुध्यातः तियशःप्रतानविच्छुरितसकलभुवनमण्डलः परिगृहीतधनदवरुणेन्द्र प्रभृतिलोकपालतेजाः सत्पथोपार्ज्जितानेकद्रविणभूमिप्रदानसंप्रीणितार्थिहृदयो(ऽ)तिशयतिपूर्व्वराजचरितो देव्याममलयशोमत्यां श्रीयशोमत्यामुत्पन्नः परमसौगतः सुगत इव परहितैकरतः परमभट्टारकमहाराजाधिराजश्रीराज्यवर्द्धनः। राजानो युधि दुष्टवाजिन इव…
कत्यूरी और ताम्रपत्रीय कार्तिकेयपुर राजवंश :-
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के मुख्य स्रोत धार्मिक ग्रंथ और विभिन्न स्थलों से प्राप्त अभिलेख हैं। इस पर्वतीय राज्य का सबसे प्राचीन राजवंश ‘कुणिन्द’ को माना जाता है, जिसका प्राचीनतम् उल्लेख महाभारत से प्राप्त होता है। द्वितीय शताब्दी ईस्वी पूर्व से तृतीय शताब्दी ई. मध्य तक कुणिन्द जनपद पंजाब से उत्तराखण्ड तक विस्तृत…
ललितशूरदेव और पद्मटदेव के पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्रों का विश्लेषण-
चमोली जनपद के अलकनंदा घाटी में बद्रीनाथ के निकट पाण्डुकेश्वर मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से उत्तराखण्ड में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर महाभारत कालीन राजा ‘पाण्डु’ और कार्तिकेयपुर के इतिहास को संरक्षित करने में सफल रहा। इस मंदिर से कार्तिकेयपुर नरेशों के चार ताम्रपत्र हुए हैं, जो उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के गौरवशाली कालखण्ड को…
उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली
उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली शब्द का बहुत ही घनिष्ठ संबंध है। यह एक ऐसा शब्द है, जो समाज में आपसी संबंधों को सशक्त बनाता है। इसके अतिरिक्त यह शब्द उत्तराखण्ड के प्राचीन अभिलेखों में उत्कीर्ण लेख हेतु भी उपयोगी था। पाण्डुलिपि या अभिलेखीय साक्ष्य प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। साहित्यिक और धार्मिक पुस्तकों तथा…
बंगाल का पालवंश और कार्तिकेयपुर के नरेश-
(प्रमुख पाल शासक) क्र.सं. पाल शासक शासन काल अभिलेख 1- गोपाल 750 – 770 ई. ———— 2- धर्मपाल 770 – 810 ई. खालीमपुर लेख। 3 – देवपाल …