उत्तराखण्ड के इतिहास में कार्तिकेयपुर राजवंश का गुणगान जिस प्रकार किया गया है, यह राजवंश मध्य हिमालय में गुप्त राजवंश के समान दृष्टिगत होता है। इस राजवंश को उत्तराखण्ड के गुप्त कह सकते हैं। चक्रवर्ती गुप्त राजवंश का कालखण्ड 319 ई. से 550 ई. तक मान्य है। जबकि बागेश्वर शिलालेख और कार्तिकेयपुर उद्घोष वाले ताम्रपत्रों…
Month: April 2022
कत्यूरियों की डोटी-अस्कोट वंशावली
उत्तराखण्ड के इतिहासकार कत्यूरी वंश को मध्य हिमालय का महान राजवंश घोषित करते हैं। कत्यूरियों की एक शाखा डोटी-अस्कोट की वंशावली कई पुस्तकों में प्रकाशित हो चुकी है। कार्तिकेयपुर के इस प्राचीन राजवंश के राज्य क्षेत्र को सम्पूर्ण उत्तराखण्ड से संबद्ध किया जाता है। इसका कारण है- उत्तरकाशी के कण्डारा, चमोली के पाण्डुकेश्वर…
गंगोलीहाट का मणकोटी राजवंश –
वर्तमान में गंगोलीहाट, सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ का एक तहसील नगर है, जहाँ कालिका का सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ है। कुमाऊँ के इस शक्तिपीठ की प्राचीनता को आदि गुरु शंकराचार्य से संबद्ध किया जाता है। इस शक्तिपीठ के प्रति स्थानीय जन मानस की ही नहीं बल्कि भारतीय सेना की भी अपार श्रद्धा है। ‘जय कालिका’ युद्ध-घोष के साथ…
कन्नौज का त्रिकोणीय संघर्ष और उत्तराखण्ड का कार्तिकेपुर राज्य :-
कार्तिकेयपुर, उत्तराखण्ड का एक प्राचीन राज्य नगर था, जिसकी पहचान विद्वान बागेश्वर जनपद के बैद्यनाथ से करते हैं। इस राज्य नगर का उल्लेख दशवीं शताब्दी के कवि राजशेखर ने ‘काव्यमीमांसा’ नामक काव्यग्रंथ में चन्द्रगुप्त द्वितीय और ध्रुवस्वामिनी प्रकरण पर किया। यह कवि कन्नौज के राजा महेन्द्रपाल (885-910 ई.) का राजगुरु था। इस कवि के अतिरिक्त…
बागेश्वर शिलालेख और उत्तराखण्ड के प्राचीन राजवंश :-
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में कुणिन्द, पौरव और कत्यूरी राजवंश का प्रमुख स्थान है। कुणिन्द इतिहास के मुख्य स्रोत कुणिन्द मुद्राएं हैं, तो पौरव वंश की जानकारी ताम्रपत्रों से प्राप्त होती है। कत्यूरी इतिहास को बागेश्वर जनपद के कत्यूरी घाटी (गोमती घाटी) से संबद्ध किया गया है, जिसके अंतिम छोर पर बागेश्वर…
सरयू-गोमती का प्रवाह और संगम तीर्थ ‘बागेश्वर’ का नामकरण :-
मध्य हिमालय का प्राचीन नगर बागेश्वर वैदिक नामकरण वाली गोमती और सरयू के संगम पर स्थित है। यह प्राचीन नगर समुद्र सतह से 935 मीटर की ऊँचाई तथा 29° 50’ 16.8’’ उत्तरी अक्षांश और 79° 46’ 15.6’’ पूर्वी देशांतर रेखा पर स्थित है। सड़क मार्ग से यह संगम स्थल मल्लों की एक शाखा…
राजा हर्ष के बांसखेड़ा और मधुबन ताम्रपत्रों का विश्लेषण :-
1-ताम्रापत्रारंभ- बांसखेड़ा और मधुवन ताम्रपत्र का प्रारंभिक वाक्यांश- ‘‘सिद्धम्।। स्वस्ति(।।) महानौहस्त्यश्वजयस्कन्धावार’’ एक ही है। ‘सिद्धम्’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘सिद्ध’ शब्द से हुई है, जो संस्कृत का विशेषण शब्द है, जिसका अर्थ- प्रमाणित, संपादित, प्राप्त, उपलब्ध और प्रयत्न में सफल आदि होता है। जबकि सिद्धम का अर्थ- धन्य है, उत्तम और पूरा किया होता…
राजा हर्ष का बांसखेड़ा ताम्रपत्र :-
(सन्दर्भ- श्रीवास्तव कृष्ण चन्द्र, 2007, यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद, प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, पृष्ठ- 499 से 500) सिद्धम।। स्वस्ति(।।) महानौहस्त्यश्वजयस्कन्धावाराच्छ्रीवर्द्धमानकोट्यामहाराजश्रीनरवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादा नुध्यातश्श्रीवज्रिणीदेव्यामुत्पन्नः परमादित्यभक्तोमहाराजश्रीराज्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातश्श्रीमदप्सरोदेप्यामुत्पन्नः परमादित्यभक्तोमहाराजश्रीमदादित्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातश्श्रीमहासेनगुप्तादेव्यामुत्पन्नश्चतुस्समुद्रातिक्क्रान्तकीर्ति प्रतापानुरागोपनयान्यराजोवर्ण्णाश्रमव्यवस्थापनप्रवृत्तचक्र एकचक्ररथ इव प्रजानामर्तिहरः परमादित्यभक्तपरमभट्टारक महाराजाधिराजश्रीप्रभाकरवर्द्धनस्तस्यपुत्त्रस्तत्पादानुध्यार्तास्सतयशप्रतानविच्छुरितसकलभुवनमण्डलपरिगृहीतधनदवरुणेन्द्र प्रभृतिलोकपालतेजास्सत्पथोपार्ज्जितानेकद्रविणभूमिप्रदानसंप्रीणितार्थिहृदयो(ऽ)तिशयतिपूर्व्वराजचरितोदेव्याममलयशोमत्या (त्यां) श्रीयशोमत्यामुत्पन्नः परमसौगतस्सुगत इव परहितैकरतः परमभट्टारकमहाराजाधिराज श्रीराज्यवर्द्धनः। राजानो युधि दुष्टवाजिन इव श्रीदेवगुप्तादय कृत्वा येन कशाप्रहारविमुखाः स्सर्व्वेसमं संयताः। उत्खाय द्विषतो विजित्य वसुधाड्.कृत्वा प्रजानां…
राजा हर्ष का मधुबन ताम्रपत्र :-
(सन्दर्भ- श्रीवास्तव कृष्ण चन्द्र, 2007, यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद, प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, पृष्ठ- 500 से 501) सिद्धम।। स्वस्ति(।।) महानौहस्त्यश्वजयस्कन्धावारात्कपित्थिकायाः महाराजश्रीनरवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातः श्रीवज्रिणीदेव्यामुत्पन्नः परमादित्यभक्तोमहाराजश्रीराज्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातःश्रीअप्सरोदेप्यामुत्पन्नःपरमादित्यभक्तो महाराजश्रीमदादित्यवर्द्धनस्तस्यपुत्रस्तत्पादानुध्यातः श्रीमहासेनगुप्तादेव्यामुत्पन्नश्चतुस्समुद्रातिक्क्रान्तकीर्तिः प्रतापानुरागोपनयान्यराजोवर्णाश्रमव्यवस्थापनप्रवृत्तचक्र एकचक्ररथ इव प्रजानामार्तिहरः परमादित्यभक्त परमभट्टारक महाराजाधिराजश्रीप्रभाकरवर्द्धनस्तस्यपुत्त्रस्तत्पादानुध्यातः तियशःप्रतानविच्छुरितसकलभुवनमण्डलः परिगृहीतधनदवरुणेन्द्र प्रभृतिलोकपालतेजाः सत्पथोपार्ज्जितानेकद्रविणभूमिप्रदानसंप्रीणितार्थिहृदयो(ऽ)तिशयतिपूर्व्वराजचरितो देव्याममलयशोमत्यां श्रीयशोमत्यामुत्पन्नः परमसौगतः सुगत इव परहितैकरतः परमभट्टारकमहाराजाधिराजश्रीराज्यवर्द्धनः। राजानो युधि दुष्टवाजिन इव…
कत्यूरी और ताम्रपत्रीय कार्तिकेयपुर राजवंश :-
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के मुख्य स्रोत धार्मिक ग्रंथ और विभिन्न स्थलों से प्राप्त अभिलेख हैं। इस पर्वतीय राज्य का सबसे प्राचीन राजवंश ‘कुणिन्द’ को माना जाता है, जिसका प्राचीनतम् उल्लेख महाभारत से प्राप्त होता है। द्वितीय शताब्दी ईस्वी पूर्व से तृतीय शताब्दी ई. मध्य तक कुणिन्द जनपद पंजाब से उत्तराखण्ड तक विस्तृत…