चमोली जनपद के अलकनंदा घाटी में बद्रीनाथ के निकट पाण्डुकेश्वर मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से उत्तराखण्ड में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर महाभारत कालीन राजा ‘पाण्डु’ और कार्तिकेयपुर के इतिहास को संरक्षित करने में सफल रहा। इस मंदिर से कार्तिकेयपुर नरेशों के चार ताम्रपत्र हुए हैं, जो उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के गौरवशाली कालखण्ड को…
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उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली
उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली शब्द का बहुत ही घनिष्ठ संबंध है। यह एक ऐसा शब्द है, जो समाज में आपसी संबंधों को सशक्त बनाता है। इसके अतिरिक्त यह शब्द उत्तराखण्ड के प्राचीन अभिलेखों में उत्कीर्ण लेख हेतु भी उपयोगी था। पाण्डुलिपि या अभिलेखीय साक्ष्य प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। साहित्यिक और धार्मिक पुस्तकों तथा…
बंगाल का पालवंश और कार्तिकेयपुर के नरेश-
(प्रमुख पाल शासक) क्र.सं. पाल शासक शासन काल अभिलेख 1- गोपाल 750 – 770 ई. ———— 2- धर्मपाल 770 – 810 ई. खालीमपुर लेख। 3 – देवपाल …
पौरव-द्युतिवर्म्मन, कन्नौज सम्राट हर्ष और कार्तिकेयपुर नरेश ललितशूरदेव के राज्य पदाधिकारी-
गुप्त साम्राज्य के पतनोपरांत भारत में क्षेत्रीय राज्य पुनः शक्तिशाली हो गये। कश्मीर से कन्याकुमारी तक नवीन राजवंशों का उदय हुआ। प्राचीन काल से कुमाऊँ के मैदानी क्षेत्र में गोविषाण राज्य अस्तित्व में था, जहाँ की यात्रा सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वैनसांग ने की थी। इस प्राचीन राज्य के पुरातात्विक अवशेष काशीपुर के उज्जैन…
तेवाड़ी ब्राह्मणी और बाजबहादुरचंददेव
भारतीय इतिहास अनेक वीर माताओं की प्रेरक सुकृत्यों को हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। प्राचीन काल से भारतीय समाज वैभवशाली शाक्त-संस्कृति के तहत वीर माताओं की स्तुति करता आया है और समय-समय पर मातृ-शक्ति समाज में अपना बहुमूल्य स्थान बनाये रखने में सफल हुई है। लगभग 4700 वर्ष प्राचीन हड़प्पा कालीन पुरातात्विक सामग्री से…
राजषड्यंत्र और चंद राजा बाजबहादुरचंद का बाल्यकाल-
राजषड्यंत्र प्राचीन काल से राजतंत्र का एक निंदनीय पक्ष रहा है। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों रामायण और महाभारत से भी राजषड्यंत्रों के उदाहरण प्राप्त होते हैं। दासी मंथरा को रानी कैकई को दो वरदानों और गंधार नरेश शकुनि का भांजे दुर्योधन को हस्तिनापुर राज्य के लिए भड़काना राजषड्यंत्रों का ही अंश था। कंस का अपने पिता…
ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र के श्लोक-
चमोली के पाण्डुकेश्वर से ललितशूरदेव के दो ताम्रपत्र- 21 वें और 22 वें राज्य वर्ष के प्राप्त हुए हैं। इस राजा के ताम्रपत्र में उल्लेखित कार्तिकेयपुर की पहचान विद्वान बागेश्वर जनपद के गोमती घाटी में स्थित ‘बैजनाथ’ से करते है, जहाँ प्राचीन मंदिरों का एक समूह गोमती के बायें तट पर स्थित है। इस…
ललितशूरदेव का 21वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र (13 वीं से 24 वीं पंक्ति)-
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी से चम्पावत तक विस्तृत भू-भाग पर स्थित प्राचीन मंदिरों से अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जिनमें शिलालेख, स्तम्भलेख, त्रिशूललेख और ताम्रपत्र महत्वपूर्ण हैं। सैकड़ों की संख्या में प्राप्त ताम्र धातु के आयताकार और वृत्ताकार फलक पर उत्कीर्ण लेख ही उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। विभिन्न राजवंशों द्वारा समय-समय पर…
ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र (प्रथम बारह पंक्तियां)-
पाण्डुकेश्वर नामक स्थान उत्तराखण्ड के चमोली जनपद के अलकनंदा घाटी में स्थित गोविन्दघाट के निकट है। प्राचीन काल में हस्तिनापुर के राजा पाण्डु ने यहाँ तप किया था। इसलिए इस स्थान को पाण्डुकेश्वर कहा गया। राजा पाण्डु ने ऋर्षि किंडम के शाप से मुक्ति पाने हेतु यहाँ भगवान विष्णु का ध्यान और तप किया। इस…
ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र-
पाण्डुकेश्वर नामक स्थल चमोली जनपद में राष्ट्रीय-राजमार्ग 7 पर जोशीमठ और बद्रीनाथ के मध्य गोविन्दघाट के निकट है। यह स्थल समुद्र सतह से लगभग 1950 मीटर की ऊँचाई पर तथा 30° 38’ 17’’ उत्तरी अक्षांश और 79° 32’ 50’’ पूर्वी देशांतर रेखा पर स्थित है। कत्यूरी शैली में निर्मित यहाँ के प्राचीन मंदिर समूह को…
उत्तराखण्ड और कुणिन्द राजवंश
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास से संबंधित एकमात्र ऐतिहासिक सामग्री कुणिन्द वंश की प्राप्त होती है, जिसे मुख्यतः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं- पुरातात्विक एवं साहित्यिक सामग्री। पुरातात्विक सामग्री में कुणिन्द मुद्राएं और साहित्यिक सामग्री में धार्मिक ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं। प्राचीन काल से तृतीय शताब्दी ईस्वी पूर्व तक कुणिन्द इतिहास का एक मात्र स्रोत्र…
चन्द्रगुप्त द्वितीय जब कर्तृपुर राज्य में आये-ः
उत्तराखण्ड के प्राचीन कुणिन्द राजवंश का पतन तृतीय शताब्दी ई. के आस पास माना जाता है। चतुर्थ शताब्दी में कुणिन्द जनपद के स्थान पर प्रयाग स्तम्भ लेख में कर्तृपुर राज्य का उल्लेख किया गया है। ‘‘समुद्रगुप्त की प्रशस्ति में नेपाल के पश्चिम में स्थित कर्तृपुर का समीकरण कुमाऊँ-गढ़वाल के किया जाता है, जिसमें रुहेलखण्ड और…
ब्रह्मपुर का पौरव वंश और स्थानीय शासन
ब्रह्मपुर नगर उद्घोष के साथ पर्वताकार राज्य में वर्म्मन (वर्म्मा) नामान्त वाले पांच पौरव शासकों ने राज्य किया, जिनका शासन काल छठी शताब्दी ई. के आस पास मान्य है। ये शासक राजा हर्ष के पूर्ववर्ती थे। वीरणेश्वर भगवान के आर्शीवाद से सोम-दिवाकर वंश (पौरव वंश) में क्रमशः विष्णुवर्म्मा, वृषणवर्म्मा, अग्निवर्म्मा, द्युतिवर्म्मा और विष्णुवर्म्मा द्वितीय…
ब्रह्मपुर का भूगोल
भारत का प्राचीन इतिहास बीसवीं शताब्दी से पहले जब लिखा गया तो, आर्य जाति के उदय और उत्थान तक सीमित था। आर्यों के मूल निवास को लेकर व्यापक परिचर्चा और शोध उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में प्राचीन भारतीय इतिहास का मुख्य विषय रहा था। आर्यों द्वारा रचित वैदिक ग्रंथों के आधार पर प्राचीन भारतीय इतिहास की घटनाओं…
ब्रह्मपुर के पौरव राज्य में भूमि पैमाइश-
ब्रह्मपुर की पहचान पुरातत्व विभाग के प्रथम महानिदेशक अलेक्जैंडर कनिंघम ने पश्चिमी रामगंगा घाटी में स्थित चौखुटिया के निकटवर्ती क्षेत्र से की, जिसे उन्होंने लखनपुर-वैराटपट्टन कहा। लखनपुर-वैराटपट्टन रामगंगा घाटी के पृथक-पृथक पुरास्थल हैं, जहाँ अब कमशः लख्नेश्वरी और वैराठेश्वर मंदिर स्थापित है। इन दो स्थलों के मध्य लगभग 5 से 6 किलोमीटर की…
तालेश्वर ताम्रपत्र और ब्रह्मपुर का इतिहास
सातवीं शताब्दी के भारतीय इतिहास को देखें तो, उत्तर भारत पर कन्नौज के शक्तिशाली राजा हर्ष का शासन था। वह उत्तर भारत का सर्वमान्य राजा था। मध्य हिमालय का ब्रह्मपुर राज्य सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही हर्ष के अधीन आ चुका था। इस तथ्य की पुष्टि हर्ष का दरबारी कवि बाणभट्ट करता है,…
ब्रह्मपुर के पौरव कालीन राज्य पदाधिकारी –
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में मध्य हिमालय क्षेत्र के तीन राज्यों स्रुघ्न, गोविषाण और ब्रह्मपुर का विशेष उल्लेख किया गया है। स्रुघ्न की पहचान हरियाणा के अम्बाला और गोविषाण की पहचान उत्तराखण्ड के काशीपुर के रूप में हो चुकी है। अलेक्जैंडर कनिंघम ने लखनपुर वैराटपट्टन की पहचान ब्रह्मपुर से की। इसी लखनपुर वैराटपट्टन के…
उत्तराखण्ड के प्राचीन राज्य ‘ब्रह्मपुर’ की पहचान :-
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में मध्य हिमालय क्षेत्र के तीन राज्यों स्रुघ्न, गोविषाण और ब्रह्मपुर का विशेष उल्लेख किया गया है। चीनी यात्री ह्वैनसांग के यात्रा विवरण में भी इन तीन राज्यों का उल्लेख किया गया है। चीनी यात्री के यात्रा विवरणानुसार वह स्रुघ्न से मतिपुर, मतिपुर से ब्रह्मपुर तथा ब्रह्मपुर से गोविषाण गया…
कुमाऊँ का मौर्योत्तर कालीन इतिहास और ‘सेनापानी’
देहरादून जनपद के कालसी नामक स्थान से मौर्य सम्राट अशोक का एक शिलालेख सन् 1860 में खोजा गया। यह शिलालेख उत्तराखण्ड में मौर्य वंश के शासन की पुष्टि करता है। मौर्य काल में मध्य हिमालय क्षेत्र पर कुणिन्द या कुलिन्द वंश का शासन था, जो सम्राट अशोक के अधीनस्थ थे। मौर्य वंश के…
महात्मा बुद्ध की गोविषाण यात्रा-
छठी सदी ईस्वी पूर्व में भारत में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई और महात्मा बु़द्ध भ्रमण और उपदेश द्वारा अपने धर्म को जनधर्म के रूप में स्थापित करने में सफल हुए। उत्तर भारत में यह कालखण्ड महाजनपद अथवा प्राग्-बुद्धकाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। छठी शताब्दी ई. पू. के साहित्यिक स्रोतों में बौद्ध-जैन धर्म ग्रंथ…