दीपचंद का अल्मोड़ा ताम्रपत्र एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है, जो चंद राज्य व्यवस्था पर प्रकाश डालता है। दीपचंद कुमाऊँ के चंद वंश के अंतिम दीप थे, जिनके शासन का उजाला 25 वर्ष से अधिक समय तक रहा था। कुमाऊँ के प्रथम चंद राजा रुद्रचंददेव (1565-1597) के उत्थान से इस वंश के पतन (सन् 1790) तक केवल…
Category: Kumaon History
प्रथम रोहिला आक्रमण : ‘कुमाऊँ राज्य के वैदेशिक संबंध’
कुमाऊँ राज्य पर प्रथम रोहिला आक्रमण सन् 1743 ई. में किया गया था। रोहिला सेना लूटपाट करते हुए चंद राज्य की राजधानी अल्मोड़ा पहुँच गयी। इतिहास की यह प्रथम और अंतिम घटना थी कि मुस्लिम आक्रमणकारी सेना चंदों की राजधानी में प्रवेश कर गयी। इस आक्रमण के समय कुमाऊँ राज्य के वैदेशिक संबंधों…
कुमाऊँ राज्य पर प्रथम रोहिला आक्रमण-
कुमाऊँ राज्य पर प्रथम रोहिला आक्रमण सन् 1743-44 ई. में किया गया था। मध्यकाल में कुमाऊँ राज्य की पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर क्रमशः डोटी व गढ़वाल परम्परागत शत्रु राज्य थे। प्राचीन काल से ही उत्तर में स्थित विशाल हिमालय और दक्षिण में तराई का सघन वन क्षेत्र इस पर्वतीय राज्य हेतु सुरक्षित प्राकृतिक…
विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र- तेरहवीं से अट्ठाईसवीं पंक्ति
विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र पौरव वंश और ब्रह्मपुर के इतिहास पर प्रकाश डालता है। इस राजा के वंशजो का शासन ब्रह्मपुर राज्य में लगभग छठी शताब्दी के आस पास था। इस वंश का इतिहास केवल ताम्रपत्रों में ही समाहित था। ये ताम्रपत्र गढ़वाल सीमावर्ती अल्मोड़ा जनपद के स्याल्दे तहसील के तालेश्वर गांव से एक…
विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र : प्रथम बारह पंक्तियाँ
विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र ब्रह्मपुर और पौरव वंश के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला एक महत्वपूर्ण स्रोत है। विष्णुवर्मन सोमदिवाकर या पौरव वंश का शासक था। इसके वंश का शासन उत्तराखण्ड में स्थित पर्वताकार राज्य में लगभग छठी शताब्दी के आस पास था, जिसकी राजधानी ब्रह्मपुर नामक नगर में थी। उत्तराखण्ड के इस प्राचीन…
विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र :-
विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र ब्रह्मपुर के पौरव वंश के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पौरव वंश का चतुर्थ शासक द्युतिवर्मन था, जिसके मृत्यूपरांत उसका पुत्र विष्णुवर्मन ब्रह्मपुर का शासक हुआ। इस पौरव राजा ने भी पिता की भाँति राज्य संवत् में ताम्रपत्र निर्गत किया, जिसके कारण इस वंश के शासन…
सोमचंद की वंशावली
सोमचंद एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व ही नहीं थे, बल्कि कुमाऊँ राज्य के नींव के पहले पत्थर थे। कहा जाता है कि सोमचंद उत्तर प्रदेश के झूसी से चंपावत आये थे। झूसी से कुमाऊँ आने की तिथि तो ज्ञात नहीं, पर सिंहासनारूढ़ होने की तिथि को पंडित रुद्रदत्त पंत ने संवत् 757 विक्रमीय या 622 शाके या…
द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र : ‘तेरहवीं से अट्ठाईसवीं पंक्ति’
द्युतिवर्मन पौरव वंश का शासक था। उसके वंश का शासन उत्तराखण्ड के ब्रह्मपुर राज्य में लगभग छठी शताब्दी के आस पास था। इस वंश का इतिहास केवल ताम्रपत्रों में ही समाहित था। द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र अल्मोड़ा जनपद के गढ़वाल सीमावर्ती तालेश्वर गांव से सन् 1915 ई. में प्राप्त हुआ। इस गांव में खेत…
द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र : ‘प्रथम बारह पंक्तियों का ऐतिहासिक अध्ययन’ :-
द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र ब्रह्मपुर और पौरव वंश के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला महत्वपूर्ण स्रोत है। द्युतिवर्मन पौरव वंश का शासक था। उसके वंश का शासन ब्रह्मपुर राज्य में लगभग छठी शताब्दी के आस पास था। इस वंश का इतिहास केवल ताम्रपत्रों में ही समाहित था। द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र अल्मोड़ा जनपद के गढ़वाल…
द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र :-
द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र ब्रह्मपुर के पौरव वंश के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। द्युतिवर्मन पौरव वंश का चतुर्थ शासक था। इस वंश के पांच शासकों के नाम अभिलेखों से प्राप्त हो चुके हैं। द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र राज्य संवत् 5 को निर्गत किया गया था। इस कारण इस ताम्रपत्र की…
चंद वंश का संस्थापक सोमचंद
उत्तराखण्ड का मध्यकालीन इतिहास पंवार और चंद वंश का पारस्परिक युद्धों का कालखण्ड रहा था। मध्यकालीन उत्तराखण्ड में पंवार तथा चंद वंश को क्रमशः गढ़वाल और कुमाऊँ राज्य स्थापित करने का श्रेय जाता है। चंद राजा रुद्रचंददेव सोहलहवीं शताब्दी में कुमाऊँ राज्य को स्थापित करने में सफल हुए थे। लेकिन रुद्रचंददेव से सैकड़ों वर्ष पहले…
उत्तर-कत्यूरी काल में कुमाऊँ के स्थानीय राज्य
तेरहवीं शताब्दी में महान कत्यूरी राज्य के पतनोपरांत स्थानीय राज्यों का उदय हुआ, जिसे उत्तर कत्यूरी काल कहा जाता है। कत्यूरियों के कुमाऊँ राज्य का विभाजन कत्यूरी राजपरिवार की विभिन्न शाखाओं में हुआ, जिनमें मुख्यतः अस्कोट के पाल और डोटी के मल्ल थे। उत्तर कत्यूरी कालखण्ड के आरंभिक वर्षों में कुमाऊँ के स्थानीय क्षत्रपों ने…
अस्कोट के रजवार शासकों के ताम्रपत्र
अस्कोट के रजवार शासकों के ताम्रपत्र कुमाऊँ के पृथक-पृथक स्थानों से प्राप्त हुए है, जो कुमाऊँ के सरयू पूर्व भू-भाग पर रजवारों द्वारा शासित क्षेत्र के राजनैतिक भूगोल को निर्धारित करने में सहायक हैं। तेरहवीं शताब्दी के अंतिम पड़ाव में कुमाऊँ का सरयू पूर्व क्षेत्र सीरा, सोर और गंगोली राज्य में विभाजित हो चुका था।…
किरौली ताम्रपत्र
किरौली ताम्रपत्र का संबंध गंगोली राज्य के रजवार शासकों से था। उत्तराखण्ड का प्राचीन कत्यूरी राज्य तेरहवीं शताब्दी में क्षेत्रीय राज्यों में विभाजित हो गया था। इनमें से एक राज्य सरयू-पूर्वी रामगंगा अंतस्थ क्षेत्र में स्थित था, जिसे ‘गंगावली’ या ‘गंगोली’ कहा गया। प्राचीन गंगोली राज्य नाग मंदिरों के लिए प्रसिद्ध था। इस क्षेत्र विशेष…
रजवार शासक आनन्दचंद रजवार का किरौली ताम्रपत्र
बड़ाऊँ या वर्तमान बेरीनाग तहसील के किरौली गांव से अस्कोट राजपरिवार के रजवार शासक आनन्दचंद रजवार का ताम्रपत्र प्राप्त हुआ, जिसे किरौली ताम्रपत्र कहा जाता है। रजवार शासक का किरौली ताम्रपत्र सर्वप्रथम सन् 1999 ई. में प्रकाश में आया था। यह ताम्रपत्र राजाधिराज आनन्द रजवार ने पूजा-पाठ हेतु केशव पंत को सन् 1597 ई. में…
गंगोली में सामन्ती शासन
गंगोली में सामन्ती शासन व्यवस्था सोलहवीं शताब्दी में चंद कालीन कुमाऊँ राज्य की प्रमुख विशेषता थी। इस सामन्ती शासन काल को रजवार शासन काल भी कह सकते हैं। गंगोली में सामन्ती शासन, चंद राजा रुद्रचंद द्वारा सीराकोट को विजित करने के उपरांत शुरू हुआ था। सीराकोट पूर्वी रामगंगा और काली अंतस्थ क्षेत्र का सबसे दुर्भेद्य…
गंगोली के रजवार शासक
तेरहवीं शताब्दी में कत्यूरी राज्य के पतनोपरांत मध्य हिमालय (कुमाऊँ क्षेत्र) स्वतंत्र लघु राज्य इकाइयों में विभाजित हो गया था। उन्हीं में एक गंगोली भी था। कुमाऊँ की दो प्रमुख नदियों सरयू और पूर्वी रामगंगा से घिरे भू-भाग को गंगोली कहा जाता था, जहाँ सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में ‘रजवार’ नामान्त उपाधि धारक शासकों ने…