द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र ब्रह्मपुर के पौरव वंश के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। द्युतिवर्मन पौरव वंश का चतुर्थ शासक था। इस वंश के पांच शासकों के नाम अभिलेखों से प्राप्त हो चुके हैं। द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र राज्य संवत् 5 को निर्गत किया गया था। इस कारण इस ताम्रपत्र की तिथि निर्धारण करने में विद्वान एक मत नहीं हैं। भाषा और लिपि के आधार पर वाई. आर. गुप्ते ने प्रतिपादित किया कि द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र लगभग छठी शताब्दी में निर्गत किया गया था। जबकि उत्तराखण्ड के प्रबुद्ध इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल ने पौरव वंश के शासन काल को सातवीं शताब्दी में राजा हर्ष के मृत्यूपरांत निर्धारित किया था। राजा हर्ष पूष्यभूति वंश के महान शासक थे, जिनका शासन काल सन् 606 ई. से 647 ई. तक रहा था।
शासन काल-
द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र राज्य संवत् 5, जिसे तालेश्वर ताम्रपत्र कहते हैं, कन्नौज सम्राट हर्ष के शासन काल से पूर्व निर्गत किया गया था। इस तथ्य की पुष्टि निम्नलिखित तथ्य इस प्रकार से करते हैं-
1- राजा हर्ष के बांसखेड़ा और मधुबन ताम्रपत्रों से उच्च वरीयता वाले सामन्त और महासामन्त जैसे महत्वपूर्ण राज्य पदाधिकारियों का उल्लेख प्राप्त होता है। इसी प्रकार हर्ष के परवर्ती उत्तराखण्ड के कार्तिकेयपुर से निर्गत ताम्रपत्रों और बागेश्वर शिलालेख से भी सामन्त और महासामन्त जैसे राज्य पदाधिकारियों का उल्लेख प्राप्त होता है। जबकि पौरव शासक द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र स्पष्ट करता है कि उत्तराखण्ड का ब्रह्मपुर राज्य सामन्त और महासामन्त जैसे पदाधिकारियों से अनभिज्ञ था। विद्वान छठी शताब्दी को भारत में सामन्ती व्यवस्था के उद्भव काल मान्य करते हैं। अतः भारत में सामन्ती व्यवस्था के आरंभ होने से पूर्व ही पौरव शासक द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र निर्गत हो चुका था।
2- उत्तर भारत के विभिन्न राजवंशों (द्युतिवर्मन-पौरव, हर्ष-पूष्यभूति, देवपाल-पाल, ललितशूरदेव -कार्तिकेयपुर) के ताम्रपत्रों में उल्लेखित राज्य पदाधिकारियों की सूची और उनके वरीयता क्रम के आधार पर भी ब्रह्मपुर नरेश द्युतिवर्मन को सम्राट हर्ष का पूर्ववर्ती कह सकते है। गुप्त साम्राज्य में भुक्ति या प्रांत का अधिकारी ‘उपरिक’ कहलाता था। द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र ‘उपरिक’ को प्रथम, हर्ष का मधुवन ताम्रपत्र सातवीं तथा कार्तिकेयपुर उद्घोष वाला ललितशूरदेव का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र सत्रहवीं वरीयता प्रदान करता है। छठवीं-सातवीं से नौवीं-दशवीं शताब्दी तक ‘उपरिक’ के घटते वरीयता क्रम से भी स्पष्ट होता है कि द्युतिवर्मन कन्नौज नरेश हर्ष का पूर्ववर्ती था।
राज्य की पहचान-
द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र स्पष्ट करता है कि उसकी राजधानी ब्रह्मपुर थी। ब्रह्मपुर की पहचान को लेकर भी विद्वान एकमत नहीं हैं। लेकिन भारतीय सर्वेक्षण विभाग के प्रथम महानिदेशक अलेक्जैण्डर कनिंघम का मत सर्वाधिक सटीक प्रतीत होता है, जिन्होंने गेवाड़ घाटी चौखुटिया के बैराट्ट और लखनपुर को ब्रह्मपुर कहा था। इस तथ्य की पुष्टि द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र प्राप्ति स्थल तालेश्वर भी करता है, जो अल्मोड़ा जनपद के गेवाड़ घाटी के पश्चिम में स्थित गढ़वाल सीमावर्ती स्याल्दे तहसील का एक गांव है।
सन् 1915 ई. में कुमाऊँ और गढ़वाल सीमावर्ती तालेश्वर गांव में एक खेत की प्राचीर का निर्माण कार्य चल रहा था। इस हेतु खुदाई में दो ताम्रपत्र प्राप्त हुए, जो ब्रह्मपुर के पौरव वंशी द्युतिवर्मन और विष्णुवर्मन के थे। अल्मोड़ा जनपद के इस ऐतिहासिक गांव में शिव को समर्पित तालेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर भी है, जिसके आंगन में गणेश और नंदी की विशाल प्रस्तर प्रतिमाएं सुशोभित हैं। इस गांव से इन दो ताम्रपत्रों की खोज से पूर्व उत्तराखण्ड के इतिहास में पौरव वंश का कोई स्थान नहीं था। उत्तराखण्ड का प्राचीन इतिहास कुणिन्द, किरात, खस, शक, और कत्यूरी के क्रम में संकलित था। इन दो ताम्रपत्रों से ब्रह्मपुर राज्य के पौरव वंश को उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में स्थान प्राप्त हुआ।
ताम्रपत्र की लिपि एवं भाषा-
पौरव शासक द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र मूलतः ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है, जिसका संस्कृत अनुवाद डॉ. शिव प्रसाद डबराल की पुस्तक ‘उत्तराखण्ड अभिलेख एवं मुद्रा’ में प्रकाशित हो चुका है। इस पुस्तक में द्युतिवर्मन के ताम्रपत्र की पंक्तियां देवनागरी लिपि और संस्कृत भाषा में इस प्रकार से उल्लेखित हैं-
1-स्वस्ति।। पुरन्दरपुर प्रतिमाद्-व्र (ब्र)ह्मपुरात् सकल जगन्मूलोर्ब्वीचक्क्र महाभार वहन (गुण वमन फण सहस्रानन्त) मूर्तेर्भगवद्-व ( ी) र (णेश्वर स्वामिन-श्चरण)।
2-कमलानुध्यातः सोमदिवाकरान्वयो गो व्रा (ब्रा)ह्मणहितैषी श्रीपुरूरवः प्रभृत्यविचिछद्यमान-सौ (पौ) रव राजवंशो अग्निरिव वैपक्ष कक्ष दहनो (भू)
3-श्र्यग्निवर्म्मा (।) तस्य पुत्रस्तत्पाद प्रसादादर्वाप्त राज्य महिमा द्युतिम दहित पक्ष द्युतिहरो विवस्वानिव द्वितीयः परमभट्टारक महाराजाधिर (ा) ज श्री-
4-द्युतिवर्म्मा कुशली पर्व्वताकारराज्ये (ऽ) स्मद वंश्यान्महाराज विशेषान्प्रति मान्य दण्डोपरिके प्रमातार प्रतिहार कुमारामाप्य पीलुपत्यश्वपति (-)
5-जयनपति गज्जपति सूपकारपतितगर (नगर) पति विषयपति भोगिक भागिक दाण्डवासिक कटुक प्रभृत्यनुजीवि वर्ग्ग सर्व्व विषय प्रधानादींश्च-
6-प्रतिवासि कुटुम्वि (बि) नः कुशलं पृष्ट्वा समाज्ञापयति विदित्तमिदमस्तु वो देवदोण्यधिकृत महासत्त्रपति त्रातैकाकिस्वामिना नय विनय श्रुत वृत-
7-सम्पन्नेन परिव्राड़ व (ब्र)ह्मचारि गौग्गुलिक परिषत्सहितेन राजदौवारिकाग्निस्वामि कारगिंक-वोट (कोट) ा धिकरणिकामात्य भद्रविष्णु पुरस्सरेण च
8-देव निकायेन विज्ञापितं सुरासुर जगदवन्द्यानन्त मूर्ति वीरणेश्वरस्मा (स्वा) मि नाथपादानां बलि चरुकसत्त्र प्रवर्तन दधिक्षीर घृत-
9-स्नपन गन्ध धूप प्रदीप पुप्प (पुष्प) ा र्च्चन प्रकार सन्मार्ज्जनोपलेपन कृषि कर्म्मानुष्ठान खण्ड स्फुठितावचटित पतित संस्कारार्थ परहितानुष्ठान-
10-चरित व्रतै युस्मत्पूर्व्वजै म्महाराज भिरन्यैश्चावनिपति भिस्तथानेक धर्म्म प्रसव हेतु भूर्द्दत्तिदायकैः स्वश्रेयसे भूमिपल्लिका ग्राम-
11-कर्म्मान्त विषयास्ताभ्र पट्ट पट वृषतापपत्रैः (पत्रकैरभि0) अभिलिख्याग्रहाराः प्रत्तिपादितकास्तानि च शासनान्या दीप्तकेन दग्धानि।
12-कालेन च गच्छता लुव्धाः (ब्धाः) कलि दोषग्रहा विष्टाः केचिदसत् पुरुषा लेख्यैर्व्विनाक्षेपं कुर्युरिति तदर्हन्ति भट्टारक पादाः शासना-
13-नुमति दानेन यथा भुज्यमान स्थान परिमाण नामान्याभिलेखयितु मिति यतो मया देवभक्त्या पूर्व्वराजर्षीणां यशो (ऽ) र्थ-
14-मात्मनश्च पुण्याभिवृद्धये वृषताप शासनमिदं दत्तम् (।।) यत्र पशु कुलावदार कर्म्मान्त कोण कलिका गंगा ग्रामे गुणेश्वरा
15-वलदीपकः वक्रय (क्रय) करण भूमि भाग सद्दितश्चोर कटको जम्बु शालिका पटल्य तर पर्वतक भाविलान करवीर कोष्टा-
16-गक्षीचरण ग्रामो (मे) महासालो वुरासिका दन्तवनिकां ज्योराणायां चोरपानीयं भग्नानूपमो ड्ढभायां पुटवनकः
17-कर्क्कटस्थूणा वंजाल्युत्तरगगंगा कपिलगर्त्ता कोटरवंजः शिवमुषीच्यापुरी दाडिमिका शिंशपिका दक्षिण ( ं) पा (र्) र्श्वे
18-शरथा विषयस्ता पल्ली करवीरगर्त्ता कोल्लपुरी भेलमस्तकः कवर्कोटायां खण्डाक पल्लिका मम्दत्तो राज्यकतोली
19-श्रृगाल खोह्णका भूतपल्लिका गोग्गपल्लिका वारुणश्रमः प्रभीलापल्लिका देवदास तोली नारायण देवकुलक मा (ला)
20-खानकः श्रीभाचर्प्पटो (ऽ) नगांल गत्तोत्तर वासो ब्रह्मपुरे कार्तिकेयपुर ग्राम कस्समज्जाव्यस्ता च भू स्ंयम्वपुरे सुवर्ण्णकार पल्लिका (द)-
21-णुण्णा (दुण्णा) वृद्धपल्लिकाचन्द्रपल्लिका वि (बि) ल्वके जय भट पल्लिका वचाकरणं ग्रमो दीपपुर्या वृद्धतरी पल्लिका क्क्रोड शूर्प्प्या वर्द्धकि पल्लिकोष्ट्राल-
22-मकः (कोष्ट्रालमकः) कटकभृष्टी डिण्डिक पल्लिका चतुश्शालो रोहागल पल्लिका शोरायां बाहिरण्य पल्लिका चन्दुला कपल्लिका भट्टिपल्लिका-
23-कार्तिकेयपुरे अतिवलाक पल्लिका विशाखिल पल्लिका अरिष्टाश्रमः अवलीनकःसन्निरायां कोट्टतले पल्लिवाटकस्तुड्. गुलकर्म्मान्तः
24-पितृगंगातटे शीर्षरण्ययः कण्ठारपार्श्वः राजपुत्रकोद्वाल कर्व्वटको व (ब) हुग्रामसहित उत्तरपथः पश्चिमद्रोण्यांउदुम्व (म्ब) रवासः
25-गोहट्टवाटकः पुष्पदन्तिका वासन्ती वनकः करवीरिका खोह्णावनको मल्ल वस्तुको मल्लिका शिवक कराभ शालिका दण्डवासि वतो-
26-गोलथालकश्चेति तद्युष्माभिरमीषांप्रक्षेप प्रतिषेधौ न करणीयौ न चोपद्रवः कुटुम्वि(म्ब)नां कारुकाणांच कर्त्तव्यो (।।) यत्कुर्यात्स पंचमहापातक-(संयु)
27-क्तः स्यादिति। दूतकः सान्धिविग्रहिकः प्रमातार सूर्यदत्तः लिखितं दिविरपति विष्णुदासेन।
28-उत्कीर्ण्णन्यक्षराणि सौवण्णिंकानन्तेनेकि।
-राज्य सं. 5 पौष दि. 30
भावानुवाद-
इस ताम्रपत्र की कुल 28 पंक्तियों का भावानुवाद भी डॉ. शिव प्रसाद डबराल ने अपनी पुस्तक ‘उत्तराखण्ड के अभिलेख एवं मुद्रा’ में इस प्रकार से किया है-
स्वस्ति। धरती पर इन्द्र की नगरी के समान ब्रह्मपुर से।
सोम-सूर्य वंश में उत्पन्न श्री पुरुवा आदि पौरव नरेशों का वंशज गौ तथा ब्राह्मणों का हितैषी, शत्रुओं को शुष्क तृणवत् दग्ध करने में अग्नि के समान समर्थ श्री अग्निवर्मन् नृपति था, जो समस्त भूमण्डल के भार को वहन करने वाले सहस्र फणों से युक्त अपरिमित गुणपूर्ण, अननत की मूर्ति भगवान वीरणेश्वर स्वामी के चरण कमलों में लीन था।
उसका पुत्र, उसकी कृपा से राज्यमहिमा को प्राप्त करने वाला, द्वितीय दिवाकर के समान अपने शत्रुओं की द्युति का अपहरण करने वाला, परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री द्युतिवर्मन अपने पर्वताकर राज्य में कुशल से हैं और अपने वंश के भूतपूर्व मान्य नरेशों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
तथा अपने दंडधर, प्रमातार, प्रतिहार, कुमारामात्य तथा हस्तिशाला, अश्वशाला, आयुधशाला, विक्रयशाला, पाकशाला, नगर तथा जिलों के अध्यक्षों, भूस्वामियों और भूमि भोगने वालों, पुलिस के अधिकारियों तथा गुप्तरचर (कटुक) आदि सेवकांं, सारे प्रान्तों के अध्यक्षों एवं पड़ोसी गृहस्थियों की कुशल पूछकर आदेश देता है।
आप लोगों को यह विदित होना चाहियये कि नीतिशास्त्र, विनय शास्त्रज्ञान तथा उत्तम चरित्र से सम्पन्न, देवपूजा विभाग के अध्यक्ष, देवपालकियों की उत्सव यात्रा के प्रधान, श्रीमान् त्रात ने परिव्राजकों, ब्रह्मचारियों और गौग्गुलिकां की परिषद्, मंदिरों के कर्मचारियां, राजद्वार के रक्षकों, यज्ञशाला के कर्मचारियों कपालियों, देवदासियों के निरीक्षक तथ आमात्य भद्रविष्णु को लेकर मुझसे प्रार्थना की है कि-
‘समस्त देवता, असुर और संसार के वन्दनीय, अनन्तदेव के अवतार भगवान् वीरणेश्वर के चरणों में बलि, चरु और सत्र चालू रखने के लिये, दधि, क्षीर तथा घृत से अभिषेक के लिये, गन्ध, धूप, दीप, पुष्पार्चन, सर्म्माजन एवं लेपन के लिये, मंदिर भूमि को जोतने तथा टूट-फूट की मरम्मत के हेतु, परहित में संलग्न, उत्तम चरित्र का व्रत धारण करने वाले आपके पूर्वज महाराजाओं ने अन्य नरेशों ने तथा अनेक धर्मकार्य करने वाले व्यक्तियों ने अपने कल्याण के लिये जो भूमि अग्रहार में दी थी उसका विस्तार पल्ली, गांव, सम्बधित उद्योग आदि का उल्लेख जिन ताम्रपट्ट, वस्त्र और वृषताप (मिश्रधातु) पत्रों पर किया था वे शासन (लेख) अग्नि में भस्म हो गये हैं।
समय बीत जाने पर कलिदोष से ग्रस्त लोभी दुष्ट पुरुष लेख का अभाव होने के कारण अग्रहारभूमि पर अधिकार करने का प्रयत्न करेंगे। अस्तु परमभट्टारक से निवदेन है कि वर्तमान अग्रहार भूमि का स्थान, परिणाम और नामादि युक्त शासन प्रदान करने की कृपा करें।
अस्तु मैंने देवभक्ति से प्रेरित होकर, पिछले राजर्षियों के यश की रक्षा तथा अपने पुण्य की अभिवृद्धि के लिये निम्न भूमि के अग्रहार के सम्बन्ध में यह वृषताप शासन प्रदान किया है।
खरक के गांव कोणकलिकागंगा में गुणेश्वरा बलदीपक नामक क्षेत्र, खेती करने योग्य बंजर भूमि सहित चोरकटक, जामुन और साल की झुरमुटों से घिरे पर्वतक, भाविलान और करवीरकोष्टागांव, गक्षीकरण गांव में महासाल, वुरासिका दन्तवनिका नामक खेत, ज्योराणागांव में चोरपानीय नामक खेत, भग्नानूपमोड््ढभा क्षेत्र में पुटबनक, कर्कटस्यूणा, बंजालि, उत्तरगंगा, कपिलगर्ता, कोटरबंज, शिवमुखी, दाडिमिका और शिंशपिका नामक पल्लियां, कर्कोटा में खंडाकपल्ली, मम्मदत्त, राज्यकतोली, श्रृगाल-खोह्णक, भूतपल्लिका, गोग्गपल्लिका, वारुणाश्रम, प्रभीलापल्लिका, देवदासतोंली, नारायणदेव, कुलकमालाखानक, श्री भाचर्प्पट तथा अनगालगर्ता कर्कोटा में उत्तरवास।
ब्रह्मपुर जिले में कार्तिकेयपुर नामक गांवाड़ा और समज्जाव्यस्ता नामक खेत, त्रयम्बपुर में सुवर्णकारपल्लिका, दुण्णा, वृद्धपल्लिका और चन्द्र पल्लिका, विल्वक में जयभट्टपल्लिका तथा बचाकरणगांव, दीपपुरी में वृद्धतरी पल्लिका, क्रेडशूर्पी में वर्द्धकि पल्लिका, उष्ट्रालमक, कटकभ्रष्टी, डिंडिक, चतुश्शाल, अरोहागल नामक पल्लियां, शारा में बाहिरण्य, चन्दुलाक और भट्टि नामक पल्लिकाएं, कार्तिकेयपुर में अतिवलाक, विशाखिल पल्लियां तथा निकटवर्ती अरिष्टाश्रम, सकिन्नरा में दुर्ग के नीचे वाटकपल्ली, जिसमें तुंगुलव्यवसाय है, पितृगंगा के तट पर शीर्षारण्य, कंठारपार्श्व, राजपुत्र ओद्वाल के नाम पर बसा बाजार, (कर्वटक) उत्तर परथ और निकट के गंवाड़े, पश्चिमी द्रोणी में उदुम्बरवास, गोहट्टबाटक, पुष्पदन्तिका, बासन्तीबनक, करवीरिका, खोह्णाबनक, मल्लवस्तुक, मल्लिका, शिंवक, कराभशालिका तथा दडबासिवत् का गोलथालक।
आप लोग इसमें कोई प्रक्षेप या प्रतिषेध न करें। जो गृहस्थी और सेवक उपरोक्त भूमि में कृषि करते हैं, उनको किसी प्रकार का कष्ट न दें। जो ऐसा करेगा उसे पंच महापातक लगेंगे। दूतक सान्धिविग्रहिक प्रमातार सूर्यदत्त, लेखक दिविरपति विष्णुदास, उत्कीर्णकर्त्ता सुवर्णकार अनन्त। राज्य सम्वत् 5, पौष, दिन 30।