उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास से संबंधित एकमात्र ऐतिहासिक सामग्री कुणिन्द वंश की प्राप्त होती है, जिसे मुख्यतः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं- पुरातात्विक एवं साहित्यिक सामग्री। पुरातात्विक सामग्री में कुणिन्द मुद्राएं और साहित्यिक सामग्री में धार्मिक ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं। प्राचीन काल से तृतीय शताब्दी ईस्वी पूर्व तक कुणिन्द इतिहास का एक मात्र स्रोत्र…
Month: January 2022
चन्द्रगुप्त द्वितीय जब कर्तृपुर राज्य में आये-ः
उत्तराखण्ड के प्राचीन कुणिन्द राजवंश का पतन तृतीय शताब्दी ई. के आस पास माना जाता है। चतुर्थ शताब्दी में कुणिन्द जनपद के स्थान पर प्रयाग स्तम्भ लेख में कर्तृपुर राज्य का उल्लेख किया गया है। ‘‘समुद्रगुप्त की प्रशस्ति में नेपाल के पश्चिम में स्थित कर्तृपुर का समीकरण कुमाऊँ-गढ़वाल के किया जाता है, जिसमें रुहेलखण्ड और…
ब्रह्मपुर का पौरव वंश और स्थानीय शासन
ब्रह्मपुर नगर उद्घोष के साथ पर्वताकार राज्य में वर्म्मन (वर्म्मा) नामान्त वाले पांच पौरव शासकों ने राज्य किया, जिनका शासन काल छठी शताब्दी ई. के आस पास मान्य है। ये शासक राजा हर्ष के पूर्ववर्ती थे। वीरणेश्वर भगवान के आर्शीवाद से सोम-दिवाकर वंश (पौरव वंश) में क्रमशः विष्णुवर्म्मा, वृषणवर्म्मा, अग्निवर्म्मा, द्युतिवर्म्मा और विष्णुवर्म्मा द्वितीय…
ब्रह्मपुर का भूगोल
भारत का प्राचीन इतिहास बीसवीं शताब्दी से पहले जब लिखा गया तो, आर्य जाति के उदय और उत्थान तक सीमित था। आर्यों के मूल निवास को लेकर व्यापक परिचर्चा और शोध उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में प्राचीन भारतीय इतिहास का मुख्य विषय रहा था। आर्यों द्वारा रचित वैदिक ग्रंथों के आधार पर प्राचीन भारतीय इतिहास की घटनाओं…
ब्रह्मपुर के पौरव राज्य में भूमि पैमाइश-
ब्रह्मपुर की पहचान पुरातत्व विभाग के प्रथम महानिदेशक अलेक्जैंडर कनिंघम ने पश्चिमी रामगंगा घाटी में स्थित चौखुटिया के निकटवर्ती क्षेत्र से की, जिसे उन्होंने लखनपुर-वैराटपट्टन कहा। लखनपुर-वैराटपट्टन रामगंगा घाटी के पृथक-पृथक पुरास्थल हैं, जहाँ अब कमशः लख्नेश्वरी और वैराठेश्वर मंदिर स्थापित है। इन दो स्थलों के मध्य लगभग 5 से 6 किलोमीटर की…
तालेश्वर ताम्रपत्र और ब्रह्मपुर का इतिहास
सातवीं शताब्दी के भारतीय इतिहास को देखें तो, उत्तर भारत पर कन्नौज के शक्तिशाली राजा हर्ष का शासन था। वह उत्तर भारत का सर्वमान्य राजा था। मध्य हिमालय का ब्रह्मपुर राज्य सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही हर्ष के अधीन आ चुका था। इस तथ्य की पुष्टि हर्ष का दरबारी कवि बाणभट्ट करता है,…
ब्रह्मपुर के पौरव कालीन राज्य पदाधिकारी –
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में मध्य हिमालय क्षेत्र के तीन राज्यों स्रुघ्न, गोविषाण और ब्रह्मपुर का विशेष उल्लेख किया गया है। स्रुघ्न की पहचान हरियाणा के अम्बाला और गोविषाण की पहचान उत्तराखण्ड के काशीपुर के रूप में हो चुकी है। अलेक्जैंडर कनिंघम ने लखनपुर वैराटपट्टन की पहचान ब्रह्मपुर से की। इसी लखनपुर वैराटपट्टन के…
उत्तराखण्ड के प्राचीन राज्य ‘ब्रह्मपुर’ की पहचान :-
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में मध्य हिमालय क्षेत्र के तीन राज्यों स्रुघ्न, गोविषाण और ब्रह्मपुर का विशेष उल्लेख किया गया है। चीनी यात्री ह्वैनसांग के यात्रा विवरण में भी इन तीन राज्यों का उल्लेख किया गया है। चीनी यात्री के यात्रा विवरणानुसार वह स्रुघ्न से मतिपुर, मतिपुर से ब्रह्मपुर तथा ब्रह्मपुर से गोविषाण गया…
कुमाऊँ का मौर्योत्तर कालीन इतिहास और ‘सेनापानी’
देहरादून जनपद के कालसी नामक स्थान से मौर्य सम्राट अशोक का एक शिलालेख सन् 1860 में खोजा गया। यह शिलालेख उत्तराखण्ड में मौर्य वंश के शासन की पुष्टि करता है। मौर्य काल में मध्य हिमालय क्षेत्र पर कुणिन्द या कुलिन्द वंश का शासन था, जो सम्राट अशोक के अधीनस्थ थे। मौर्य वंश के…
महात्मा बुद्ध की गोविषाण यात्रा-
छठी सदी ईस्वी पूर्व में भारत में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई और महात्मा बु़द्ध भ्रमण और उपदेश द्वारा अपने धर्म को जनधर्म के रूप में स्थापित करने में सफल हुए। उत्तर भारत में यह कालखण्ड महाजनपद अथवा प्राग्-बुद्धकाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। छठी शताब्दी ई. पू. के साहित्यिक स्रोतों में बौद्ध-जैन धर्म ग्रंथ…
राम के पूर्वज जो गंगोली के ‘पाताल भुवनेश्वर’ गुहा आये थे -ः
राम के पूर्वज पाताल भुवनेश्वर गुहा आये थे। गुहा ही आरम्भिक मानव निवास स्थल थे। मध्य हिमालय का भूवैज्ञानिक इतिहास आद्य महाकल्प के द्वितीय युग ‘इयोसीन’ से आरम्भ होता है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार इस युग में टेथिस सागर के स्थान पर हिमालय का निर्माण आरम्भ हुआ और यह प्रक्रिया निरन्तर जारी है। जबकि आरम्भिक…
गंगोली का राजनीतिक भूगोल : एक ऐतिहासिक परिदृश्य-
कुमाऊँ का ‘गंगोली’ क्षेत्र भी एक विशिष्ट सांस्कृतिक और भौगोलिक क्षेत्र है। इस विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र को सरयू-पूर्वी रामगंगा का अंतस्थ क्षेत्र भी कह सकते हैं। वर्तमान में गंगोली का मध्य-पूर्व और दक्षिणी क्षेत्र पिथौरागढ़ तथा मध्य-पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र बागेश्वर जनपद में सम्मिलित है। गंगोली के राजनीतिक भूगोल का अर्थ- इस विशिष्ट…
चंद राजा विक्रमचंददेव (सन् 1423-1437 ई.) -ः
मध्य हिमालय में कुमाऊँ राज्य की स्थापना का श्रेय चंद राजवंश को जाता है। चंदों से पूर्व कुमाऊँ राज्य उत्तर कत्यूरी शासकों में विभाजित था। कत्यूरी राज्य का विभाजन वर्ष सन् 1279 ई. को माना जाता है, जब कत्यूरी त्रिलोकपाल के पुत्र अभयपाल कत्यूर से अस्कोट चले गये। इस कालखण्ड में कत्यूरी वंशजों…
CHAR BURHA ‘चार बूढ़ा’ –
‘चार बूढ़ा’ – ‘एक मध्यकालीन चंद राज्य पद’ ‘चार बूढ़ा’ एक मध्यकालीन राज्य पद था, जिसका सम्बन्ध चंद राज्य से था। कुमाऊँ में चंद राज्य का आरंभिक सत्ता केन्द्र चंपावत था। चंपावत नगर के निकट राजबूंगा चंद राज्य की आरंभिक राजधानी थी। चंद कौन थे ? इतिहासकारों के एक मतानुसार सोमचंद…
चार चौधरी : मध्य कालीन ग्रामीण पंचायत व्यवस्था
चार चौधरी के उल्लेख वाला ताम्रपत्र – सम्पूर्ण कुमाऊँ के प्रथम चंद राजा रुद्रचंददेव थे। इस चंद राजा ने यह महान उपलब्धि सन् 1581 ई. में काली और पूर्वी रामगंगा अंतस्थ क्षेत्र में स्थित सीराकोट को विजित कर प्राप्त की। इस विजय के साथ सम्पूर्ण कुमाऊँ राज्य चंद वंश के अधीन आ गया, जिनकी…