नंदा का उल्लेख- नंदा-सुनंदा उत्तराखंड की आराध्य देवियाँ के साथ-साथ एक सांस्कृतिक पहचान भी है। सांस्कृतिक पहचान के साथ नंदा देवी अपना एक भौगोलिक पहचान को धारण किये हुए है। नंदादेवी उत्तराखण्ड हिमालय की सबसे ऊँची चोटी है, जिसकी ऊँचाई 7817 मीटर है। यह पर्वत उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में 30° 22’ 33’’ उत्तरी अक्षांश…
Month: December 2021
EARLIER CHAND आरंभिक चंद
उत्तराखण्ड के इतिहास में मध्य कालीन इतिहास विशेष महत्व रखता है। इस कालखण्ड में यह पर्वतीय राज्य दो क्षेत्रीय राज्यों में विभाजित था। पश्चिमी रामगंगा और यमुना के मध्य का भू-भाग गढ़वाल तथा पश्चिमी रामगंगा और कालीनदी मध्य का भू-भाग कुमाऊँ कहलाता था। ऐतिहासिक मतानुसार नौवीं सदी में गढ़वाल के चमोली जनपद में जहाँ कनकपाल…
BAROKHARI FORT बड़ोखरी का दुर्ग
बटखोरी या बड़ोखरी का दुर्ग इतिहास में कुछ युद्ध स्थल विशेष महत्व रखते हैं। ‘पानीपत’ व ‘तराईन’ की युद्ध भूमि दिल्ली की सत्ता के लिए एक द्वार के समान थे। इन दोनों युद्ध स्थलों को दिल्ली पर शासन करने योग्य शासकों का चुनाव स्थल कह सकते हैं। प्राचीन काल से भारतीय राजाओं ने शत्रु से बचाव हेतु दुर्भेद्य दुर्गों…
BAROKHARI FORT बड़ोखरी दुर्ग (ऐतिहासिक स्रोत)
इतिहासकार बद्रीदत्त पाण्डे ने ‘कुमाऊँ का इतिहास’ नामक पुस्तक में इस दुर्ग का वर्णन किया है। इस दुर्ग को उन्होंने गुलाब घाटी (राष्ट्रीय राजमार्ग 87 पर काठगोदाम ) के पास चिह्नित किया। डॉ. शिवप्रसाद डबराल ने ‘उत्तराखण्ड के अभिलेख एवं मुद्रा’ नामक पुस्तक में चंद राजा दीपचंद का एक ताम्रपत्र (शाके 1677 या सन् 1755…
बिठोरिया, हल्द्वानी के विरखम
मध्य हिमालय (कुमाऊँ क्षेत्र) प्राचीन एवं मध्यकालीन प्रस्तर स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। बैजनाथ-गरुड़, द्वाराहाट, बागेश्वर, कटारमल, जागेश्वर, मोहली-दुगनाकुरी, थल, वृद्धभुवनेश्वर-बेरीनाग, जाह्नवी नौला-गंगोलीहाट तथा बालेश्वर-चंपावत आदि मंदिर समूह प्राचीन और मध्यकालीन कुमाउनी मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मंदिर स्थापत्य कला के साथ-साथ मध्य हिमालय में मूर्ति कला का भी विकास हुआ। देव…
MANKOT मणकोट
प्राचीन गंगोली राज्य मणकोट नामक स्थान जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील में स्थित है। इतिहासकार प्राचीन गंगोली राज्य के विभिन्न राजवंशों को मणकोट से संबद्ध करते हैं। ‘‘कत्यूरी-राज्य के समय तमाम गंगोली का एक ही राजा था। उसके नगर दुर्ग का नाम मणकोट था। राजा भी मणकोटी कहलाता था।’’ मणकोट का सामरिक महत्व देखें, तो…
एक हथिया देवाल स्थापत्य कला और दंत कथा-
स्थापत्य- एक हथिया मंदिर की कुल ऊँचाई 10 फीट 2 इंच है। मंदिर की कुल लम्बाई मण्डप सहित 8 फीट 2 इंच तथा चौड़ाई 4 फीट 1 इंच है। इस प्रकार मंदिर की लम्बाई और चौड़ाई में 2 और 1 का अनुपात है। इस एकाश्म मंदिर का आधार शिलाखण्ड की लम्बाई 16 फीट…
KAILAS TEMPLE OF KUMAON कुमाऊँ का कैलास मंदिर
एक हथिया मंदिर- उत्तराखण्ड का एक मात्र एकाश्म प्रस्तर से निर्मित प्राचीन मंदिर पिथौरागढ़ जनपद के थल नगर पंचायत के निकटवर्ती बलतिर और अल्मिया गांव के मध्य में स्थित है। इस एकाश्म मंदिर को ‘एक हथिया’ कहा जाता है। शैली व कालक्रम के आधार…
RIVERS OF GANGOLI गंगोली की नदियां
एक ऐतिहासिक एवं भौगोलिक अध्ययन कुमाऊँ का ‘गंगोली’ क्षेत्र एक विशिष्ट सांस्कृतिक और भौगोलिक क्षेत्र है। इस विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र को सरयू-पूर्वी रामगंगा का अंतस्थ क्षेत्र भी कह सकते हैं। वर्तमान में गंगोली का मध्य-पूर्व और दक्षिणी क्षेत्र पिथौरागढ़ तथा मध्य-पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र बागेश्वर जनपद में सम्मिलित है। गंगोली क्षेत्र पूर्व, पश्चिम…
बनकोट पुरास्थल से प्राप्त प्रागैतिहासिक ताम्र उपकरण
बनकोट का संक्षिप्त इतिहास- बनकोट पुरास्थल उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जनपद के नवनिर्मित गणाई-गंगोली तहसील में स्थित एक पर्वतीय गांव है, जिसे ब्रिटिश कालीन पट्टी अठिगांव, परगना गंगोली, जनपद अल्मोड़ा में के रूप में चिह्नित कर सकते हैं। जिस पहाड़ी की उत्तरी पनढाल पर बनकोट गांव बसा है, उसके दक्षिणी पनढाल में सरयू नदी प्रवाहित है। इस गांव…
UTTARAKHAND: PREHISTORIC TO COPPER AGE उत्तराखण्ड : प्रागैतिहासिक से ताम्रयुग तक
मध्य हिमालय का भूवैज्ञानिक इतिहास आद्य महाकल्प के द्वितीय युग ‘इयोसीन’ से आरम्भ होता है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार इस युग में टेथिस सागर के स्थान पर हिमालय का निर्माण आरम्भ हुआ और यह प्रक्रिया निरन्तर जारी है। जबकि आरम्भिक मानव का इतिहास पांचवें युग ‘प्लीओसीन’ से शुरू हुआ। इस युग में महाद्वीप और…
THE EARTH AND EARLIER HISTORY OF HUMAN पृथ्वी और मानव का प्रारम्भिक इतिहास
प्रथम महाकल्प-पूर्व कैम्ब्रियन- पृथ्वी और मानव का प्रारम्भिक इतिहास का मूल स्रोत पृथ्वी ही है और जिसकी आयु के साथ मानव इतिहास निरन्तर प्रगतिशील होता जा रहा है। वैज्ञानिकों का मत है कि ‘‘हमारी पृथ्वी 4.6 अरब वर्ष पुरानी है।’’ लेकिन मानव इतिहास इतना प्राचीन नहीं है। जीव वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर एक क्रमिक…
स्वागत करता है आपका इतिहास –
उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के मुख्य स्रोत धार्मिक ग्रंथ और विभिन्न स्थलों से प्राप्त अभिलेख हैं। इस पर्वतीय राज्य का सबसे प्राचीन राजवंश ‘कुणिन्द’ को माना जाता है, जिसका प्राचीनतम् उल्लेख महाभारत से प्राप्त होता है। द्वितीय शताब्दी ईस्वी पूर्व से तृतीय शताब्दी ई. मध्य तक कुणिन्द जनपद पंजाब से उत्तराखण्ड तक विस्तृत था। इस…