तेरहवीं शताब्दी में कत्यूरी राज्य के पतनोपरांत मध्य हिमालय (कुमाऊँ क्षेत्र) स्वतंत्र लघु राज्य इकाइयों में विभाजित हो गया था। उन्हीं में एक गंगोली भी था। कुमाऊँ की दो प्रमुख नदियों सरयू और पूर्वी रामगंगा से घिरे भू-भाग को गंगोली कहा जाता था, जहाँ सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में ‘रजवार’ नामान्त उपाधि धारक शासकों ने राज्य किया था, जो गंगोली के रजवार शासक कहलाये। वास्तव में गंगोली राज्य का राजनीतिक इतिहास तेरहवीं शताब्दी में रामचन्द्रदेव के नेतृत्व में अस्तित्व में आया था, जिन्हें उत्तर कत्यूरी कहा जाता है। इस वंश के चार नरेशों ने गंगोली पर लगभग 100 वर्ष शासन किया था। इनके पश्चात गंगोली में नेपाल मूल के चंद वंशीय शासकों का शासन आरंभ हुआ, जिन्हें मणकोटी भी कहा जाता है। इस राजवंश ने गंगोली पर लगभग 200 वर्ष शासन किया था। अिंंतम मणकोटी राजा नारायणचंद को पराजित कर चंद राजा बालो कल्याणचंद ने गंगोली पर अधिकार करने में सफल हुए थे। इस चंद राजा ने गंगोली के शासन हेतु ‘गंगोला’ नामक एक नवीन राज्य पद को पदावस्थापित किया था।
बालो कल्याणचंद के पुत्र रुद्रचंद ने सन् 1581 ई. में कुमाऊँ के सबसे दुर्भेद्य दुर्ग सीराकोट (सीरा राज्य की राजधानी) को विजित किया और पूर्वी रामगंगा पूर्व का सम्पूर्ण राज्य डोटी मल्ल राजवंश से छीन कर गंगोली सहित अस्कोट-पाल वंश को सौंप दिया था। रुद्रचंद द्वारा सीरा विजयोपरांत सरयू पूर्व क्षेत्र में जो राजनीतिक समीकरण बने, उसमें अस्कोट-पाल राजवंश सशक्त हुआ और डोटी-मल्ल राजवंश ने काली नदी को सीमा मान्य कर सदैव के लिए अपने को काली पूर्व (डोटी-नेपाल) में ही सीमित कर लिया था। डोटी-मल्ल राजा हरिमल्ल द्वारा सीराकोट छोड़ने के पश्चात सरयू पूर्व में सन् 1581 ई. से चंदों के अधीन सामन्तीय शासन आरम्भ हुआ था। अभिलेखीय साक्ष्य इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि अस्कोट-पाल वंश का शासन गंगोली सहित सीरा और सोर क्षेत्र पर था। चंदों के अधीन गंगोली में सामन्तीय शासन की पुष्टि निम्नलिखित ताम्रपत्र करते हैं-
1- इन्द्र रजवार का शाके 1516 या सन् 1594 ई. का ताम्रपत्र।
2- आनन्दचंद रजवार का शाके 1519 या सन् 1597 ई. का ताम्रपत्र।
3- कल्याणपाल रजवार का शाके 1525 या सन् 1603 ई. का ताम्रपत्र।
4- पृथ्वीचंद रजवार का शाके 1532 या सन् 1610 ई. का ताम्रपत्र।
5- महेन्द्रपाल का शाके 1544 या सन् 1622 ई. का ताम्रपत्र।
रजवार शासकों का मूल वंश-
गंगोली के रजवार शासक किस वंश से संबंधित थे ? इस प्रश्न के मूल में अस्कोट-पाल वंश है। ‘रजवार’ नामान्त वाले गंगोली के शासक अस्कोट-पाल वंशीय थे। चंदों के अधीन अस्कोट-पाल वंश के प्रथम सामन्त शासक ’रायपाल’ थे, जो कत्यूरी वंशावली अस्कोट शाखा के 94 वें राजा थे। मूलतः गंगोली के रजवार शासक भी कत्यूरी वंश के थे, जिनके वंश में शालिवाहन, आसन्तिदेव, बासन्तिदेव, कटारमल्ल, प्रीतमदेव, त्रिलोकपाल और अभयपाल जैसे महान राजा हुए थे। शालिवाहन इस वंश के प्रथम पुरुष थे, जो अयोध्या के सूर्यवंशी थे। एडविन थॉमस एटकिंसन के अनुसार शालिवाहन अयोध्या से जोशीमठ (चमोली) आये और कालान्तर में इस वंश के आसन्तिदेव जोशीमठ से कत्यूर (गोमती घाटी, बागेश्वर) आये और कत्यूरी कहलाये।
अस्कोट-पाल वंशावली से स्पष्ट होता है कि इस वंश के 36 वें राजा त्रिलोकपालदेव थे, जिनके पुत्र अभय ने ‘देव’ उपाधि त्याग कर मात्र पिता के नामन्त के दो अक्षरों ‘पाल’ को धारण किया और सन् 1279 कत्यूर से अस्कोट चले गये थे। तेरहवीं शताब्दी में कत्यूरी राजपरिवार में राज्य विभाजन के फलस्वरूप ही डोटी-मल्ल की भाँति अस्कोट-पाल वंश भी अस्तित्व में आया था। इस वंश में अभयपाल के पश्चात क्रमशः निर्भयपाल, भारतीपाल, भैरवपाल और भूपाल राजा हुए थे। भारतीपाल के नाम का प्रभाव चंपावत के चंद राजा भारतीचंद के नामकरण में भी दिखलाई देता है। भूपाल के पश्चात इस वंश के राजाओं ने संभवतः डोटी-मल्ल वंश की अधीनता स्वीकार कर ली थी। चंद राजा रुद्रचंद के सीराकोट अभियान (सन् 1581 ई.) तक अस्कोट का पाल वंश डोटी-मल्ल शासकों के प्रभाव में था। सीराकोट को विजित करने और कूटनैतिक कारणों से रुद्रचंद ने अस्कोट-पाल वंश से वैवाहिक संबंध स्थापित किया था। सरयू पूर्व क्षेत्र में डोटी-मल्ल वंश के विरूद्ध एक स्थानीय शक्ति को स्थापित करने हेतु रुद्रचंद ने सीरा राज्य विजित करने के उपरांत सरयू पूर्व का सम्पूर्ण राज्य अस्कोट-पाल वंश के रायपाल को सौंप दिया था।
सरयू पूर्व की राजसत्ता प्राप्त करने वाले रायपाल की हत्या सन् 1588 ई. में गोपी ओझा नामक ब्राह्मण ने कर दी थी। उस समय राज्य के उत्तराधिकारी और राजकुमार महेन्द्रपाल नवजात बालक ही थे। इसलिए सरयू पूर्व क्षेत्र पर अस्कोट-पाल राजपरिवार के सदस्यों ने नामान्त में ‘रजवार’ उपाधि धारण कर राज्य किया। सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी के प्रकाशित पाल ताम्रपत्रों से कल्याणपाल रजवार, इन्द्र रजवार, आनन्दचंद रजवार और पृथ्वीचंद रजवार का उल्लेख प्राप्त होता है, जिन्होंने सरयू पूर्व कुमाऊँ क्षेत्र पर शासन किया था। ये सभी राजा महेन्द्रपाल के बालक होने के कारण प्रतिनिधि शासक थे। इसलिए इन्होंने पाल उपाधि से भिन्न ‘रजवार’ उपाधि धारण की थी।
गंगोली के रजवार शासक-
सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रुद्रचंद के नेतृत्व में कुमाऊँ राज्य अस्तित्व में आ चुका था। उस समय अस्कोट-पाल वंश के राजा रायपाल थे, जो रुद्रचंद के अधीन एक अर्द्ध-स्वतंत्र राजा थे। उनके उत्तराधिकारी महेन्द्रपाल हुए। रायपाल की मृत्यु के संबंध में पंडित बद्रीदत्त पाण्डे लिखते हैं- ‘‘सन् 1588 में गोपी ओझा द्वारा मारे गये। केवल एक छोटे बालक महेन्द्रपाल ‘ग्वाल’ जाति की एक स्त्री के द्वारा सुरक्षित होने से किसी प्रकार बच निकले। यह छोटे राजकुमार राजा रुद्रचंद के पास भेजे गये। इन्होंने 300 रुपये वार्षिक कर पर कुँवर महेन्द्रपाल को अपना करद राजा बनाया।’’ परन्तु ताम्रपत्रीय साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि अस्कोट-पाल वंश के कल्याणपाल राजकुमार महेन्द्रपाल के संरक्षण थे। जबकि रायपाल की हत्या करने वाले नेपाली मूल के ओझा ब्राह्मण पाल शासकों के पुरोहित थे। अस्कोट के निकटवर्ती एक गांव का नाम ओझा गांव है, जो अस्कोट-पाल वंश और ओझा ब्राह्मणों के आपसी संबंधों की पुष्टि करता है।
रुद्रचंद के उत्तराधिकारी और कनिष्ठ पुत्र राजा लक्ष्मीचंद (1597-1621) तथा कल्याणपाल रजवार का एक संयुक्त ताम्रपत्र शाके 1525 (सन् 1603 ई.) भेटा, पिथौरागढ़ से प्राप्त हुआ है, जिसमें महेन्द्रपाल कुँवर का उल्लेख किया गया है। कुँवर उपाधि से स्पष्ट होता है कि सन् 1603 ई. तक रायपाल के पुत्र महेन्द्रपाल राजकुमार ही थे, राजा नहीं, जो पारिवारिक सदस्य कल्याणपाल रजवार के संरक्षण में थे। इस संयुक्त ताम्रपत्र (शाके 1525) में उत्कीर्ण है- ’’श्री कल्याणपाल रजवार महेन्द्रपाल कुंवर सपरिवार चिरं जयतू।’’ अर्थात श्री कल्याणपाल रजवार, कुंवर महेन्द्रपाल सहित सपरिवार दीर्घायु रहें।
अस्कोट-पाल वंशीय कल्याणपाल रजवार के समकालीन गंगोली में आनन्दचंद रजवार शासक थे। गंगोली में आनन्दचंद रजवार के पूर्ववर्ती सामन्त शासक इन्द्र रजवार और परवर्ती सामन्त शासक क्रमशः पृथ्वीचंद रजवार और महेन्द्रपाल थे। राजनैतिक परिस्थितिवश महेन्द्रपाल के वयस्क होने तक सरयू पूर्व के राज्य को पाल राजपरिवार में विभाजित किया गया था। रजवार शासकों के प्रकाशित ताम्रपत्रों से स्पष्ट होता है कि सीरा और सोर में कल्याणपाल रजवार तथा गंगोली में सर्वप्रथम इन्द्र रजवार शासक नियुक्त हुए थे। गंगोली क्षेत्र से प्राप्त ताम्रपत्रों के आधार पर गंगोली पर निम्नलिखित रजवारों ने शासन किया था-
1- इन्द्र रजवार
2- आनन्दचंद रजवार
3- पृथ्वीचंद रजवार
4- महेन्द्रपाल
इन्द्र रजवार-
कुमाऊँ में रजवार शासकों के प्राप्त ताम्रपत्रों में सर्वाधिक प्राचीन ताम्रपत्र इन्द्र रजवार है, जो सन् 1594 ई. को निर्गत किया गया था। पाल वंशीय राजा रायपाल की मृत्यु के छः वर्षों के उपरांत निर्गत इस ताम्रपत्र को रत्नाकार हतु और गंगू पाण्डे को प्रदान किया गया था, जो बागेश्वर के चामी गांव से प्राप्त हुआ। इसलिए यह ताम्रपत्र इन्द्र रजवार का चामी ताम्रपत्र कहलाता है। लेकिन बागेश्वर का चामी गांव गंगोली राज्य की भौगोलिक परिसीमा के वाह्य क्षेत्र में स्थित है। चामी से इन्द्र रजवार का ताम्रपत्र (शाके 1525) प्राप्त होने से स्पष्ट होता है कि सोलहवीं शताब्दी में तल्ला दानपुर भी गंगोली राज्य में सम्मिलित था। द्वितीय रजवार शासक आनन्दचंद रजवार के किरौली ताम्रपत्र से स्पष्ट होता है कि सन् 1597 ई. में इन्द्र रजवार की मृत्यु हो चुकी थी या उन्हें गंगोली के रजवार शासक या गवर्नर पद से हटा दिया गया था। गंगोली का नौ वर्ष तक रजवार शासक या गवर्नर रहने के कालखण्ड में इन्द्र रजवार का समकालीन कुमाऊँ राजा रुद्रचंद था।
आनन्दचंद रजवार-
सन् 1999 ई. में पिथौरागढ़ जनपद के बेरीनाग क्षेत्र के किरौली गांव से रजवार शासक आनन्दचंद का एक ताम्रपत्र हुआ, जिसे किरौली ताम्रपत्र कहा जाता है। इस ताम्रपत्र ने गंगोली में रजवार शासन की अवधारणा को सिद्ध कर दिया। राजाधिराज आनन्दचंद के किरौली (प्राचीन नाम ग्यारहपाली, बड़ाऊँ क्षेत्र) ताम्रपत्र में शाके 1519 (सन् 1597 ई.) की तिथि उत्कीर्ण है। इस वर्ष कुमाऊँ राज्य के प्रथम चंद राजा रुद्रचंद की मृत्यु हुई और उनके कनिष्ठ पुत्र लक्ष्मीचंद चंद राजसिंहासन पर आसित हुए थे। किरौली गांव बेरीनाग-थल-मुनस्यारी सड़क मार्ग पर उडियारी बैण्ड से मात्र 4 किलोमीटर दूर है। यह ताम्रपत्र केशवपंत नामक ब्राह्मण को देवता की पूजा-पाठ हेतु दिया गया था। सन् 1597 ई. से 1606 ई. तक आनन्दचंद रजवार ने गंगोली पर शासन किया था। सन् 1610 ई. का अठिगांव (गणाई-गंगोली) ताम्रपत्र गंगोली तृतीय रजवार शासक पृथ्वीचंद रजवार ने निर्गत किया था, जिसमें सन् 1606 ई. की तिथि का भी उल्लेख किया है। अतः आनन्दचंद रजवार ने सन् 1597 से 1606 ई. तक गंगोली के रजवार शासक या गवर्नर पद पर कार्य किया था। इनके नौ वर्षों के कालखण्ड में अल्मोड़ा के राजसिंहासन पर लक्ष्मीचंद आसित थे।
पृथ्वीचंद रजवार-
राजाधिराज पृथ्वीचंद रजवार के गणाई-गंगोली (अठिगांव) ताम्रपत्र में उत्कीर्ण दो तिथियों के आधार पर पृथ्वीचंद रजवार के शासन काल को सन् 1606 ई. से 1610 ई. तक तो निर्धारित कर ही सकते हैं। लेकिन पूर्ववर्ती गंगोली के रजवार शासकां या गवर्नरों के 9 वर्षीय शासन काल के आधार पर कह सकते हैं कि पृथ्वीचंद ने सन् 1606 ई. से 1615 ई. तक अवश्य शासन किया था। पृथ्वीचंद रजवार ने अठिगांव ताम्रपत्र वसु उपाध्याय को निर्गत किया गया था। इस ताम्रपत्र में ‘तमोटा’ शब्द का उल्लेख किया गया है, जिसे विद्वान स्थानीय टम्टा जाति से संबद्ध करते हैं। ताम्र धातु के बर्तन बनाने वाली जाति को कुमाउनी में टम्टा कहा गया। गंगोली में ताम्र धातु के उपयोग का सर्वाधिक प्राचीन प्रमाण प्रागैतिहासिक कालीन पुरास्थल ‘बनकोट’ से प्राप्त हुआ है, जो ब्रिटिश कालीन अठिगांव पट्टी का ही एक गांव है। पृथ्वीचंद रजवार के उपरांत महेन्द्रपाल का शाके 1544 या सन् 1622 का अठिगांव (गणाई-गंगोली) ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है।
महेन्द्रपाल-
महेन्द्रपाल, अस्कोटपाल-वंश के राजा रायपाल के पुत्र थे। पिता की मृत्यु के समय वे नवजात बालक थे। सन् 1603 ई. के लक्ष्मीचंद और कल्याणपाल के संयुक्त ताम्रपत्र में महेन्द्रपाल का उल्लेख कुँवर नामान्त से किया गया है। ‘कुँवर’, चंद राज व्यवस्था के अंतर्गत ज्येष्ठ राजकुमार या उत्तराधिकारी राजकुमार की पदवी होती थी, जो वर्तमान में कुमाउनी क्षत्रियां की एक जाति है। संभवतः कल्याणपाल उनके चाचा थे। प्रकाशित अस्कोट-पाल वंशावली में 94 वें एवं 95 वें क्रमांक पर क्रमशः रायपाल और महेन्द्रपाल का उल्लेख किया गया है। गंगोली के अठिगांव से महेन्द्रपाल का सन् 1622 ई. का एक ताम्रपत्र प्राप्त हुआ। संभवतः पृथ्वीचंद रजवार के पश्चात रजवार शासक या गवर्नर पद पर सन् 1615 ई. में महेन्द्रपाल को नियुक्त किया गया था। सन् 1622 ई. के उपरांत गंगोली में रजवार शासन के प्रमाण प्राप्त नहीं होते हैं। सरयू पूर्व के सामन्तीय शासन को संभवतः सन् 1623 ई. में चंद राजा विजयचंद ने समाप्त कर दिया था।
लक्ष्मीचंद के पौत्र विजयचंद के ताम्रपत्र (सन् 1623 ई.) से ‘गंगोला’ नामक राज्य पद का उल्लेख प्राप्त होता है। गंगोला नामक राज्य पद की पुनः स्थापना से स्पष्ट होता है कि विजयचंद ने गंगोली सहित समस्त सरयू पूर्व क्षेत्र को सीधे चंद राज्य के नियंत्रण में ले लिया था। इनके परदादा रुद्रचंद ने सन् 1581 ई. में सरयू पूर्व क्षेत्र का राज्याधिकार-अस्कोट पाल वंश को दे दिया था, जिसे विजयचंद ने सन् 1623 ई. में सदैव के लिए समाप्त कर दिया। गंगोली में रजवारों का शासन मात्र 42 वर्ष का रहा था।
गंगोली के रजवार शासकों की सूची-
1- इन्द्र रजवार (1588 – 1597) समकालीन कुमाऊँ राजा रुद्रचंददेव (1568 – 1597)
2- आनन्दचंद रजवार (1597 – 1606) समकालीन कुमाऊँ राजा रुरुद्रचंददेव
3- पृथ्वीचंद रजवार (1606 – 1615) समकालीन कुमाऊँ राजा लक्ष्मीचंद (1597 – 1621)
4- महेन्द्रपाल (1615 – 1623) समकालीन कुमाऊँ राजा लक्ष्मीचंद और दिलीपचंद (1621 – 1622)