एक हथिया मंदिर-
उत्तराखण्ड का एक मात्र एकाश्म प्रस्तर से निर्मित प्राचीन मंदिर पिथौरागढ़ जनपद के थल नगर पंचायत के निकटवर्ती बलतिर और अल्मिया गांव के मध्य में स्थित है। इस एकाश्म मंदिर को ‘एक हथिया’ कहा जाता है। शैली व कालक्रम के आधार पर इतिहासकार इस मंदिर को दशवीं सदी के आस पास का बतलाते है। इस मंदिर के संबंध में इतिहासकार डॉ. यशवंत सिंह कठोच लिखते हैं- ‘‘एक ही चट्टान पर उकेरा गया इस काल का एक-मात्र देवालय जनपद पिथौरागढ़ में थल के समीप अल्मिया ग्राम में प्राप्त हुआ है। नागर शैली का त्रिरथ-विन्यास में निर्मित यह देवालय शिव को समर्पित है।’’ एकाश्म प्रस्तर से निर्मित यह प्राचीन शिव मंदिर मध्य हिमालयी स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है।
व्यापारिक केन्द्र ‘थल’-
पिथौरागढ़ जनपद के पूर्वी रामगंगा तट पर बसा मध्य हिमालय का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र ‘थल’ नाम से प्रसिद्ध था, जहाँ नदी के बायें तट पर प्रसिद्ध देवालय ‘‘बालीश्वर’’ है। थल-बालीश्वर में कत्यूरी-चंद कालीन कुल पाँच मंदिर स्थापित हैं। इन पाँच मंदिरों में मुख्य मंदिर सबसे विशाल है और जिसके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर त्रिरथ शैली में निर्मित पश्चिमाभिमुखी है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार चंद राजा उद्योतचंद सन् 1691-92 ई. में करवाया था। समुद्र सतह से बालीश्वर मंदिर समूह 796 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। जबकि पूर्वी रामगंगा नदी इस मंदिर प्रांगण से मात्र 18 मीटर की गहराई पर प्रवाहित होती है। यह मंदिर समूह 29° 49’ 29’’ उत्तरी अक्षांश रेखा तथा 80° 08’ 27’’ पूर्वी देशांतर रेखा पर स्थित है। थल के इस प्राचीन मंदिर से दो किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में ‘एक हथिया देवाल’ मंदिर है। समुद्र सतह से ‘एक हथिया देवाल’ मंदिर 975 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अतः थल के बालीश्वर मंदिर स्थल से इस मंदिर स्थल की समुद्र सतही ऊँचाई मात्र 81 मीटर अधिक है।
एक हथिया देवाल स्थिति –
एक हथिया देवाल 29° 49’ 20’’ उत्तरी अक्षांश रेखा तथा 80° 09’ 00’’ पूर्वी देशांतर रेखा पर स्थित है। यह मंदिर, थल बालीश्वर मंदिर से 9’’ दक्षिण तथा 33’’ पूर्व में स्थित है। ‘‘दो अक्षांशों के मध्य औसत दूरी 111 किलोमीटर होती है।’’ अतः मानचित्र मानकानुसार बालीश्वर मंदिर से एक हथिया देवाल मंदिर लगभग 277 मीटर दक्षिण में स्थित है। ‘‘30° अक्षांश पर दो देशान्तरों के मध्य 96.5 किलोमीटर की दूरी होती है।’’ अतः मानचित्र मानकानुसार बालीश्वर मंदिर स्थल से एक हथिया देवाल मंदिर लगभग 845 मीटर पूर्व में स्थित है। इस प्रकार पूर्वी रामगंगा नदी के पावन तटवर्ती भूमि में लगभग 1 से 2 किलोमीटर के क्षेत्र में दो ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर ‘थल’ नगर पंचायत के महत्व को रेखांकित करते हैं, जो चंद-ब्रिटिश काल में भोट-व्यापार का बागेश्वर की भाँति एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था। ब्रिटिश काल में यह व्यापारिक केन्द्र परगना सीरा के ‘माली’ पटटी के अंतर्गत आता था। थल में पूर्वी रामगंगा के दायें किनारे पर बरड़ नदी (पुंगराऊँ घाटी को उपजाऊ बनाती है।) समागम करती है, जहाँ पर श्मशान घाट है।
एक हथिया मंदिर (अल्मिया) में थल देवालय से पैदल और सड़क मार्ग से पहुँच सकते हैं। थल-मुवानी-पिथौरागढ़ सड़क मार्ग पर 1 किलोमीटर आगे बढ़ने पर बायें पार्श्व से एक सम्पर्क सड़क वलतिर-अल्मिया गांव को जाती है। वलतिर और अल्मिया गांव की सीमा पर ही ‘एक हथिया देवाल’ मंदिर स्थापित है। एक विशाल शिला को काटकर एकाश्म प्रस्तर मंदिर का निर्माण, मंदिर स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर के अर्द्ध मण्डप में प्रयुक्त लघु स्तम्भों की आकृति कत्यूरी कालीन प्रतीत होती है। एक स्तम्भ का विभाजन- आधार, धड़ और शीर्ष पर कमलाकृति चौकी आदि कत्यूरी कालीन शिल्प कला की एक विशेषता रही है। इस आधार पर इस मंदिर के कालखण्ड को इतिहासकार 10-11 वीं सदी का निर्धारित करते हैं। मध्य हिमालय क्षेत्र में एकाश्म प्रस्तर से निर्मित यह एक मात्र मंदिर है। अतः इस मंदिर को उत्तर भारत का कैलास मंदिर कह सकते है। इस संबंध में प्रो. अजय रावत लिखते हैं- ‘‘मढ़ के सूर्य-मंदिर के पास थल का एक हथिया देवाल है। यह बनावट में एलोरा के कैलास मंदिर के सदृय है। इसे कैलास मंदिर के समान एक ही चट्टान उकेरा गया है।’’
एक हथिया मंदिर परिसर –
एक हथिया देवाल मंदिर उत्तराभिमुखी है, जिसके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के समीप दायें पार्श्व में एक विशाल शिलाखण्डावशेष है, जिसे काटकर ही सैकड़ों वर्ष पूर्व एक हथिया देवाल को तराशा गया था। इस एकाश्म देवाल को स्थापत्य कला की दृष्टि से मुख्यतः तीन भागों में बांट सकते हैं- अर्द्ध-मण्डप, गर्भगृह और विमान। विमान के अग्रभाग ‘‘अन्तराल पर निर्मित सादी शुकनासा पर प्रदर्शित सिंह का मुख खण्डित है।’’ अन्तराल का अर्थ एक ऐसी संरचना जो अर्द्ध-मण्डप के ठीक ऊपर, विमान वाले भाग से संयुक्त रहती है और जिस पर ‘सिंह’ की मूर्ति स्थापित रहती है। अर्द्ध-मण्डप की सुन्दरता तथा मण्डप-आलेखन हेतु प्रयुक्त पैमाना, प्राचीन कुमाऊँ में विशुद्ध मापन प्रणाली या अभियंता तंत्र को अभिव्यक्त करता है। मंदिर के अर्द्ध-मण्डप के सामने उत्तर में नहर-प्रणाली युक्त एक जलकुण्ड है, जिसके लिए जल की व्यवस्था निकटर्ती गधेरे (लघु जल धारा) से की गई थी। गधेरे से जलकुण्ड तक जल पहुँचाने हेतु इस एकाश्म मंदिर के बायें पार्श्व में स्थित विशाल शिलाखण्डावशेष के आधार भाग को काट कर गूल या लघु नहर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर के जल प्रबंधन व्यवस्था के आधार पर कह सकते हैं कि प्राचीन मध्य हिमालय क्षेत्र में नहर-प्रणाली विकसित अवस्था में थी। नागर शैली में निर्मित यह मंदिर उत्तराखण्ड के समृद्धशाली स्थापत्य कला के इतिहास को अभिव्यक्त करता है। सैकड़ों वर्षों से यह प्राचीन मंदिर संरक्षणाभाव के उपरांत भी सुरक्षित रहा है। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस एकाश्म मंदिर को अपने संरक्षण में ले लिया है।